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________________ 114 महाचन्द्र-मुनि-कृत बारहवरवर-कक्क. मातृका-प्रकार का अनुअपभ्रंश-कालीन उपदेशात्मक जैन काव्य. संपा. हरिवल्लभ भायाणी. सहायक (श्रीमती) प्रीतम सिंघवी. पृ. १२८. पार्श्व शैक्षणिक और शोधनिष्ठ प्रतिष्ठान, अहमदाबाद, १९९७. Some topics in the Development of OIA, MIA, NIA. H. C. Bhayani. pp. 150. L. D. Institute of Indology, Ahmedabad, 1997. जैन धर्मना विश्वकोश / ज्ञानकोशनी योजना अमेरिकाना जैन एकेडेमिक फाउन्डेशन तरफथी Encyclopedia of Jainism तैयार करवानी एक महत्त्वकांक्षी योजना हाथ धराई छ । (१) इतिहास, (२) दर्श अने मनोविज्ञान, (३) धर्म, आचारनीति, समाज, (४) न्याय अने प्रमाणविचार, (५) भाषा अने साहित्य (६) कला अने स्थापत्य, (७) विज्ञान, (८) समकालीन धर्म, दर्शन, संस्कृति । आ माटे जैन धर्म, परंपरा, भाषा-साहित्य आदिना विज्ञानोनी एक विस्तृत परामर्श-समितिनी अने डॉ. कमल चन्द सोमाणीनी प्रधान संपादक तरीके नियुक्त कराई छ । जैन-आगम-भाषा-विषयक संगोष्ठीना संबंधमां विद्वानोना पत्रो आ संबंधमां "जैन आगमों की मूल भाषा" पर एक विद्वत्-संगोष्ठी हमणांज एप्रिल मासमां अमदावादमां ज योजाई हती अने एनुं परिणाम स्पष्ट हतुं के अर्धमागधी आगमो शौरसेनी आगमो करतां प्राचीन छे अने ए विषे बे मत होई शके ज नहीं। अर्धमागधी भाषनां मूळ स्वरूपनी परिस्थापना विषे अने अर्धमागधी तथा शौरसेनी आगमोनी पूर्वापरता विषे पाश्चात्य विद्वानो | अभिप्राय धरावे छे ते विषे जे पत्रो अमने मळ्या छे ते तेमना मूळ स्वरू अने भाषामां नीचे उद्धृत करवामां आवी रह्या छ । - के. आर. चन्द्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520510
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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