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________________ संशोधन-समाचार : मेरुतुंग-बालावबोध-व्याकरण नारायण म. कंसारा वि.सं. १४०३ थी १४७१ दरमियान हयाति धरावी गयेल अंचलगच्छीय आचार्यश्रीमेरुतुंगसूरि एक बहुश्रुत विद्वान अने ग्रंथकार हता. एमणे कामदेवचरित्र, संभवनाथचरित्र, जैनमेघदूत, षड्दर्शननिर्णय, जेसाजीप्रबंध, नाभिवंशमहाकाव्य वगेरे त्रीसेक ग्रंथो रच्या छे. एमांनो एक ग्रंथ 'मेरुतुंगबालावबोध-व्याकरण' छे. आ ग्रंथना संपादननी कामगिरी बे एक वर्ष पूर्वे अंचलगच्छीय आचार्य श्री कलाप्रभसूरिजी द्वारा मने सोंपवामां आवी हती. 'बुद्धिसागरव्याकरण'ना कार्यमां वच्चे थोडोक अवकाश मळ्यो त्यारे तेनी साथे साथे आ कार्य आरंभीने ए १९९६ना डीसेम्बरमा पूर्ण थयेटु. अत्यारे ए ग्रंथ, छपाइकाम चालु छे अने छ एक मासमां प्रसिद्ध थशे. आ बधी कामगिरीनु संचालन आचार्यश्री द्वारा थइ रह्यं छे. 'मेरुतुंगव्याकरण' विषे 'संस्कृत व्याकरण शास्त्र'ना इतिहासोमां खास कोई माहिती मळती नथी. एनुं कारण.ए छे के आ व्याकरण मूळे 'कातंत्रवृत्ति'ना स्वरूपनुं छे, तेथी ए कोई स्वतंत्र व्याकरण होवानुं प्रसिद्ध नथी. तेनी जे चार हस्तप्रतो मळी छे तेमां 'बालवबोधवृत्ति' , 'कृत्सूत्रवृत्ति-बालावबोध', 'कातंत्र बालबोधवृत्ति' अने 'कातंत्र व्याकरण बालबोधवृत्ति सह' आवां ज ग्रंथ नामो छ. आचार्य मेरुतुंगसूरिए पोते पण कोई स्वतंत्र रचना कर्याना दावो कर्यो नथी. उलटुं एमणे तो ग्रंथना आरंभे बीजा मंगलश्लोकमां ज त्रीजा-चोथा चरणोमां "कातन्त्रस्य प्रवक्ष्यामि व्याख्यानं शार्ववर्मिकम् ॥ २॥" एम कही दीधुं छे. आ उपरथी जणाय छे के आ ग्रंथ रचना पाछळ एमनो उद्देश पोताना शिष्यसमूहने सरळताथी संस्कृतना जाणकार बनाववानो अने - 'बालावबोध'नो ज हतो. छतां 'मेरुतुंग बालवबोध-व्याकरण' ए स्वतंत्र ग्रंथ गणाववानी पात्रता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520510
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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