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________________ 93 गेहु निरुवम सह गुणगणह इह सुहगुरु, केण उवमिज्जए भविय कप्पतरु । चंद सकलंकुधर तवइ दिवसेसरो, खारुजलु खारुजलु खारुजलु सायरो ||५|| ॥ इति श्री जिनप्रबोधसूरि- श्रीजिनचंद्रसूरि-चन्द्रायणाकाव्यं समाप्तम् ।। कृतिरियं मोदमन्दिरगणीनाम् ॥ श्री सज्जन श्रावक कृत श्रीजिनेश्वरसूरि कुण्डलिया चविह धम्मु चलणु जसु धीरह, पंचसमिति तिहुगुपित सरीरह । पंचाणणुवय पंच धरंतउ, जिणिसरसूरि तवतेयं फुरंतउ ॥१॥ तवतेय फुरंतउ गयणि जंपिउ, कामकरिहि जु डारणो, कुंभयल संगम बलतलप्पवि, कोहमयविडारणो । सुइ सीहु देसण रविण गज्जइ, भवियबोहसुप्पहे, जयवंतु जिणिसरसूरि गणहरु, धम्ममग्गि चउविहे ||१|| भंजिउ मोहखंभ जिणि लीलिण, सकल निविड साय तोडिय मण | निज्जिउ कोहु दोसु अड चंडउ, जिणेसरसूरि करि धरि विहि दंडउ ॥२॥ करि धरिवि दंड पयंडु चंडिम, मोह वणु जिणि भग्गओ हरिगच्छविंझगइंद-मुणिंदगणमाहि माणिकदंडओ । विहि धम्म सम्म सहाव सीलिण गुडगहि विरङ गंजए झर्णर्णर्ण झेंझेंकार जिणेसरसूरि कुग्रह भंजए ||२| सील सरोवर पुडइणि मंडिउ, रायहंसि खणु इक्कु न च्छंडिउ । जिणेसरसूरि कमलु वर अच्छर, बहुगुणभरिउ भविउ जणु पिच्छइ ||३|| पिच्छि गुणच्छइ छक्कदलवरकम- सुहगुरु भवियणा X X X X X X X XI वरनाण जलपुड इणि सुसंजमि चरणसरकरुसिरे गणुर्गुणुणु भमर मुणिंद रसु सिद्धंतु तहिं सीलस्सरे ||३|| छज्जइ कमणुप्पमइ है सुहगर गरुयबुद्धि मज्जाय... यर हर । जिणसासणह करइ पब्भावण जिम सुरिंदु सुरगिरिनिच्छलम ||४|| मणु करिवि निच्चलु भविय Jain Education International . सुहगुरुरु- वयणि भुवण कराविया For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520509
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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