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________________ 84 शीलव्रत ज स्वामी दीजइ संबल लीजइ एतलुं शील लेइ जम्बु जाइ सुख थाइ अति भलु ॥ ४१ ।। आवइ आवइ रे आवइ थ...... कुण गणइ । मात तातनइ रे मझ दीक्षा दिउ इम भणइ । जंबू बोलइ रे जाणीनई जंतु को हणइ' ।। ४२ ।। ..........जाणी इम वाणी लेइ रहि आठ कन्या तम्हे परणु मात तात ते इम कहि । अह्मे परणी चारित्र ....... उं तु सही हा ज पाडी कहि माडी हरख पहुचाडउ वही ।। ४३ ।। परणइ परणइ रे कन्या आठ एकइ दिनि । मनि जाणइ रे दिन ऊगि जाउं वनि । रयणीइ रे कन्या आठइ बूझवी । जंबूनई रे कोडि नवाणुं रिद्धि हवी ॥ ४४ ॥ J० हवी रिद्धि नीमसधि प्रभावु चोरा भली आवीउ निद्रा देतु धन लेतु जंबूइं बोलावीउ । पंचसइ चोरा थंभ्या थोरा कहि प्रभवु सुणि धणी बिय वद्या मुझ लेई एक आपि न तुझ तणी ? ॥४५ ॥ कहि जंबूरे मुझ कुवद्या ते कसी । जिनधर्मनी रे वात मोरइ हईइ वसी । प्रभवु रे पांचसई चोरशुं तव वलिउं । चोरी हत्या रे पाप थकी ते तां टलिउ ॥ ४६ ॥ J० टलइ पापथी आप आपि माय बाप चारित्र धरइ कन्या आठना माय बाप नारी पणि संयम वरइ । पांचसइ चोर सहित प्रभवु जंबू साथि संयम लीइ पांचसइ अठावीसनई सोहम्मस्वामि चारित्र दीइ ।। ४७ ।। १. एक पंक्ति खूटती जणाय छे, अथवा ३ पंक्तिनी ज कडी हशे ? | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520509
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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