________________
רר
दुगविध शिक्षा उपदिशैजी ।। ३ तेर क्रिया व्रत बार गिहि पडिमा अगीयार ग०,
श्रावक गुण एकवीस भेद सिद्धना जी ॥ ४ विनय वैयावच्च कल्प धरे दशविध छ अकल्प ग०,
वंदन दोष बत्रीस विकथा चार तजेजी ।। ५ कुमकुम घोळ कचोळ गहूंली रंगमरोळ ग०,
अक्षत श्रीफल उपरेजी ॥ ६ मगधाधीपनी नारी सोल सजी शिणगार ग०,
लळीलळी करती लूंछणाजी ॥ ७ जोती गुरुमुख चंद पामती परमानंद ग०,
चतुर चिकोरी गोरडीजी ॥ ५ सुरवधु नरवधु कोडि मिली मिली सरखी जोडी ग०,
गावे जिनशासन धणीजी ॥ ९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org