SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुपूर्ति जिनागमोनी मूळ भाषा विशे परिसंवाद प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, प्राकृत विद्या मंडळ तथा प्राकृत जैन विद्या विकास फंड - आ त्रण विद्या संस्थाओना आश्रये जैनाचार्य श्री सूर्योदयसूरिजी तथा श्री शीलचंद्रसूरिजीना सांनिध्यमां अमदावादना शेठ श्री हठीसिंह केसरीसिंहना भव्य जैन मंदिरना परिसरमां "जैन आगमोनी मूळ भाषा" विषे एक विद्वत्संगोष्ठी योजाई गई. भगवान महावीरे अर्धमागधी भाषामां पोतानां धर्मप्रवचनो आपेलां तेमज मनां आगमो पण अर्धमागधी भाषामां ज मूळतः सचवायां हतां, ते वात इतिहास तेमज आगमनां प्रमाणोथी स्वतः सिद्ध छे. भारतीय तेम ज जर्मन विद्वानोनी दोसो वर्षोनी आधुनिक संशोधन-परंपरा द्वारा पण आ तथ्य सिद्ध थयेलुं ज छे, अने आज सुधी आ मुद्दे कोई जातनो विवाद के मतभेद पण न हतो. परंतु, छेल्लां बेएक वर्षो दरम्यान जैन धर्मनी एक शाखा दिगंबर संप्रदायना केटलाक मुनिवरो तथा अमुक विद्वानो द्वारा एवं प्रस्थापित करवानो जोरदार प्रयत्न थई रह्यो छे के भगवान महावीर तथा तेमना आगमोनी भाषा अर्धमागधी प्राकृत नहि, परंतु शौरसेनी प्राकृत हती. आ नवीन अभिगम तथा अभिप्रायनुं प्रामाणिक मूल्यांकन तथा परीक्षण अत्यंत अनिवार्य हतुं. माटे आ विद्वत्-संगोष्ठीनुं आयोजन आचार्यश्रीनी प्रेरणाथी करवामां आव्यं हतुं. बे दिवस चालेली आ संगोष्ठीमा स्थानिक तथा बहारगामना मळीने तेर जेटला शोधनिबंध प्रस्तुत थया, जेमां डॉ. मधुसूदन ढांकी, डो. सत्यरंजन बेनर्जी, डॉ. सागरमल जैन, डॉ. रामप्रसाद पोद्दार, डॉ. एन. एम. कंसारा, डॉ. दीनानाथ शर्मा, डॉ. प्रेमसुमन जैन, डॉ. जितेन्द्र शाह, डॉ. रमणीक शाह, डॉ. भारती शेलत, कु. शोभना शाह, डॉ. के. रिषभचंद्र, डो. हरिवल्लभ भायाणी, तथा पं. दलसुखभाई मालवणियां वगेरे विख्यात तेमज नामांकित विद्वानोनुं प्रदान हतुं अने चर्चामां भाग लीधो हतो. तो ते सिवाय अन्य चालीसेक विद्वानोए चर्चामा भाग लीधो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520509
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy