SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [3] गाथा इय चिंतंत कुमारो, दाण-वसण-विहिय-सहल-संसारो । . मन्नतो सुन्नं तो, तेण विणा तारिसं नयरं ॥१७ भुजंग प्रयात छंद जिहाँ सत्त भू-पीढ-आवास-साला, जिहाँ गयण-संलग्ग-दुग्गा विसाला । सराराम वर कूव वावी रसाला, विणा दाणमेगं पि संसार-जाला ॥१८ जिहाँ गयह गज्जंति रज्जंति राया, हया हेलि हिंडंति जव-जित्त-वाया। धरा-मंडले धीर धसमसइँ धाया, विणा दाणमेगंपि संसार-माया ॥१९ जिहाँ कव्व कोऊहलाणंद-कंदा, महा-गीय-नाएण रंजिय नरिंदा । महा-पंडिया जत्थ पाढंति छंदा, विणा दाणमेगं पि संसार-निंदा ॥२० महा-रूव-लावण्ण-लीला-विलासा, महा-भोग-संयोग-संसार-आसा। पिया-माय-भायंगणा पेमपासा, विणा दाणमेगं पि सव्वे निरासा ॥२१ कलशे षट्पद ते मंदिर गिरि-विवर नयर नव रणह लिक्खइ, दाण-धम्म-विण धम्म सहु तिम सुण्णउँ पिक्खइ । 1 xx xx xx xx ते लक्खण समुहुत्त दिवस निसि गिणइं, जे ण जण-सिउं हसि मिलई (?) ॥२२ गाथा अह बहु-दाण-समागय-सज्जण-रोलंब-डुंब-झंकरिणो । तस्सेव कुमर-करिणो आसि सहा सज्जणो नाम ॥२३ सो सव्वत्थ निरन्जल कुमर-नरिंदस्स पहाण-पुरुसोव्व । सुह-असुह-कज्ज करणे, निवारिओ धारिओ (?) लोए ॥२४ सज्जण-नामेण पुणों; पगईए दुज्जणो-वि कुमरेण । बहु-दाण-माण-पुट्ठो, जलही जलणं व पडिकूलो ॥२५ सकल-सरूव-सुवित्तो, दूमिज्जंतो जणेहिं तं कुमरो । नवि छंडइ जह चंदो कलंकमसुहेण कम्मेण ॥२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520508
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy