________________
[69]
सात सयां प्रभू वंदीइ रे लाल, ऊपरि भाष्या त्रीस, जा० ॥९ भवियण भावइ पूजीइ रे लाल, पूजतां हरष अपार, जा० पूजा भगवती सूत्रमा रे लाल, दसमा अंग मुझारी, जा० ॥१० उववाई ठाणांगमां रे लाल, भाषइ श्री भगवंत, जा० निश्चल मनि प्रभू सेवतां रे लाल, लहीइ सुष अनंत, जा०॥११
कलस जेह पूजइ जेह पूजइ तेह पामइ, तीर्थमाल त्रंबावती, अरिहंत देष्य नर सीस नामइ, ऋधि रमणि घरि सूरतरू उसभ (अशुभ) कर्म ते सकल वांमइ, संवत सोल नि त्रिहोत्यरि माह शुदि पुंनिम सार,
ऋषभदास रंगइ भणइ सकल शंघ जयकार || १ इति श्री तीर्थमाल त्रंबावती स्तवन समाप्त । संवत् १७४४ ना वरषे कारतिग
सुदि २ दिने लिषितं श्रीस्तंभतीर्थे ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org