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________________ [51] पाय विलग्गी अंतडी ॥ ४६७ वाइँ फरकइ मूंछडी, मुखिहिक बीड्या दंत । सूतउँ सेलाँ माथउँ करी, मरउँ सुहावा कंत । निसि भरि नख जव देअती, तव कुणणतउ कंत । खग्ग-झटुक्का किम सह्या, किम सहिया गय-दंत ॥ ४६९ कंतह करउँ ति भामणाँ जिम जिम देखउँ अंखि । इक्क लडइँ असिवर धरइँ, वयरी गया ति झंखि ॥ ४७० सखी आह अथ सोरठिया दूहा ॥ राग सोरठी ॥ ए कीणइ सहु कोइ, सहु कीणइ ए को नहीं । कटक निहाली जोइ, सूनउ सोरठीउ भणइ ॥ ४७१ भलउँ भणाविउँ भीमि, भारषि जिम भूवइ सरिस । रायह एही सीम, जइ जामाई सिउँ कलह ॥ ४७२ सहियर साम्हउँ देखि, ओ असवार तिहाँ सुलई । राखइ राउत रेख, रण-रसि रमताँ रायसँ ॥ ४७३ इम करताँ सुविहाण, सहियर-सुं गुण-गोठडी । कुंअरी बि-पुहरां जांण, किलउ हूउ कुरु-खेत जिम ॥ ४७४ जोताँ बहु जणा तेणि, झडपड लीधा झाटके । रायह दलि नवि केणि, नासत नवि काढी छुरी ॥ ४७५ पद्धडी . उड्डेति पवणि जिम अक्तूल, विक्खरइँ वसुहि जिम घाम-पूल । तणु कंजिय गंजिय जेम खीर, नासविय कुमरि तिम राय-वीर ॥४७६ भज्जंत सुहड इम दिट्ठ जाम, बिहुँ मंति बिहुं दलि मिलीय ताम । अउसरीय कटक दुइ दिद्ध-आण, सह पत्त झत्ति भूवइअ-थाण ॥ ४७७ कहि सामिय भामिय केण तुम्ह, किणि कारणि एवड झुज्झ-कम्म । अविमासिउँ मम करि देव हेव, इणि वत्ति तत्ति तूअ पडइ छेव ॥ ४७८ अविमासिय जे नर करइँ काम, ते हुइँ पुरिस बहु दुक्ख-धाम । वलि लहइँ लोइ अविवेय-कित्ति, तसु छंडइँ लहु लहु जलहि-पुत्ति ।। ४७९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520508
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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