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________________ [ 37 ] इम चिंति कुमर करुणद्द-चित्त, अंसुय-जल- विलुलिय- तुरल - नित्त । सुयणत्त - विसेसिहिँ सुयण - नाम, हक्कारइ नियजण पेसि धाम ॥ ३५९ डाविय पुच्छ कुमर - राय, तउँ कवण कवण हउँ मुणसि भाय । इम जंपइ किंपिय तणुभयत्त, सु जि सुयण सुघिणिघिणि सद्द - जुत्त ॥ ३६० निन्नासिय तम - भरपूरसूर, नवि जाणइ उग्गिय कोइ सूर । बहु - नरवइ - नामिय-सीसईस, कोइ अच्छहि बहुगुण तउँ खितीस || ३६१ हउँ रंक रोर-भर- भरिय - देह, सिउँ पुच्छसि नरवर वत्त एह । तव बुल्लइ कुमर न भणसि सच्च न, अज्ज - वि जइ तउ मुझ एह वच्च ॥ ३६२ नवि धरउँ हणउँ नवि कहुउं किंपि, जिम अच्छइ तं तह - सव्व जंपि ॥ नवि जाणउँ सामिय किंपि तत्त, तव बुल्लिउ कुमर - नरिंद वत्त ॥ ३६३ वण--भितरि अंतरि ईस - साखि, तिहँ धम्म - अहम्मह विगति दाखि । उवयार-सार तइँ किद्ध सुयण, लिद्धाँ ललियंगकुमार - नयण ॥ ३६४ तउँ हुइ सुयण हउँ कुमर तेउ, मिल्हिउ वण निब्भर स्यणि जेउ । इम सुणिय सुयण तसु वयण जोइ, उलक्खिय अहो - मुहि दुहिउ जोइ ॥ ३६५ कुंडलिया अह ललियंगकुमार तसु दिद्धउ बहुअ पसाउ । अवगुण किद्धइ गुण करइँ गरुआ एह सहाउ || ३६६ गरुआ एह सहाउ चाउ - चतुरिम - गुण - चंगा । साउ-जल सुसमत्थ सदा गुणियण-जण-संगा ॥ न्हाण - दाण- बहुमाण भत्ति भोयण - सुयणह सह । कारिय बहुअ पसाउ - राउ ललियंगकुमारह || ३६७ उत्तम उत्तम सहज निय मिल्हइँ नवि-मरणंति निनाडिय ताविय तोलिय वि कणय समुज्जल-कंति । कणय समुज्जल- कंति घसिय जिम चंदणि परिमल इच्छु- दंड कियखंड सुघण पल्लंत सुर सहलं ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520508
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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