________________
[35]
पोसिय-सयल-सुयण-जण-वग्गं समय-समय-वर-तंत-सुलग्गं ।। ३४४ वर-तंत-सुलग्गं कुमर वरग्गं वहुअर-करि-कर-संलग्गं मंगल-जयकारं वार-चियारं चउरिय-बारं चउ-बारं । हअ-वरसुर-सखं जोसिय-दक्खं वेस-वयण-घण-अक्खंतं इम हूउ वीवाहं सयल-सणाहं बहुअ-उच्छाहं दक्खंतं ॥ ३४५
स्रग्विणी छंद बहुअ-उच्छाह नरनाह जियसत्तुउ । सह-सयण-सहिय तत्थेव संपत्तउ । दिअइ रज्जद्ध कुमरस्स कर-मोयणे पत्त-बहु-लोय-कोऊहलालोयणे ॥ ३४६ देस-दल-सेस-बहु-गाम-पुर-पट्टणां खेड तसु रेड रयणाइँ आगर घणा । गय-तुरिय-साहणा पुव्व-रह-वाहणा बहुअ-धण-धन्न-भंडार भंडह तणा ।। ३४७ बहुअतर-राय-पायक्क-परियण-जणा पुण्ण-सोवण्ण-रुप्पाइ-कुप्पं घणा । सत्तभूपीढ... ... बहु-मंदिरा घण-कणय-रुप्प-रत्थाइँ अइसुंदरा ॥ ३४८ एम सत्तंग-रज्जद्ध-रिद्धि-जुउ पुव्व-पुण्णेण सिरिवास-पुर-निवसुउ । पुप्फवइ-जुत्त-नर-भोग-कलमाण ए मणुअभवि अ(सु?)र दोगुंद जिम जाणए ॥ ३४९ अहिणवउ इंद गोविंद कइ चंदओ कुमर-ललिअंग ललिअंग चिर नंदओ । दिंतु आसीस इम लोय सह निय-गिहं कुमर-राओ वि गंतूण भुंजइ सुहं ॥ ३५०
इति श्री षट्ऋतु-भोग-चक्रवर्ति-चक्रकोटीर-सकल-गुण-रत्न-सिन्धुमलिकराज-श्रीमुञ्जराज-सद्बन्धु-पुत्र पवित्र-श्रीलखराजादि-सकल-परिकर-शंकर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org