SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [19] ता झत्ति कुमर - राओ जंपइ रे दुट्टु धिटु पाविट्ठ | तुह सज्जणाभिहाणं, अभियक्खा जह विसस्सेव ॥२०० किंचेवं दुच्छुद्धि, चितो वह बंधणाईएस पुणो । वाहाओ - विय अहिओ, पावेणं जह सुयं लोए ॥२०१ पावस्स कारगाओ, सुनिंदणिज्जो कुबुद्धि - दायारो । इत्थ कमि कहं सो, सुणइ सुइमं सव्वहा सुहियं ॥ २०२ जह कोवि वणे वाहो, कण्णंताकिट्ठ - दिड्ढ - कोदंडो । घायग्ग-गयाए पुण, हरिणीए पत्थियो एवं ॥ २०३ खणमेत्त मेव चिट्ठसु, वाह वयामत्ति ताव निय ठाणे । लहु-लहुअ- अपच्चाई छुहाए बाहिज्जमाणाइँ ॥। २०४ तेसिं थण - पाणमहं, कारित्ता जाव तुअ समीवम्मि । नो एमि तओ पट्टा, पुणरवि तेणेव वाहेणं ॥ २०५ जइ नो जइ एसि तओ, किं ता बंभ-त्थीय - पमुह - वह - जणियं । पावं पवणमाणा, नो मन्नइ तं तहा वाहो || २०६ I ता पुणरवि सा हरिणी, जंपइ नो एमि जइ तर सुणसु । वीसत्थस्सुवएस, जो देइ, नरो अहिय - कारं ॥ २०७ पावेण तस्स तुरियं लिप्पामि पुत्ति सा गया तुरियं । निय - वयण लुद्धा, समागया पुण भणइ एवं ॥२०८ छुट्टामि कहं सुपुरिस, तुह - बाण - पहार - मार- - वाराओ तो लुद्धउ विचितइ, किं एयाए पुरा भणियं ॥ २०९ वीसत्थाए इमाए, पसु निहणि जं च देमि कुवएसं । ता पावाओ पावो छुट्टेमि कहं....।।२१० इअ चिंतिऊण वाहो, विम्हिय-हियओ पयंपए एवं । भद्दे मं दाहिणओ, गच्छसि ता गच्छ... ॥२११ एवं तहत्ति भणिया, गया गिहं सो- विवाह - अवयंसो । ता तुज्झ कमि इमं किं देसि कुपाव पावमई ॥ २१२ Jain Education International ... चतुर्भिः कलापकम् । इति हरिणी - दृष्टान्तः ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520508
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy