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________________ [17] तव पयंपि तव पयंपि सुयण सुवहास, कासु जल कित्ति वर, कुमर सच्च धण धम्म कामिय, धम्मपभाविहिँ सहु वली, रज्ज-रिद्धि तइँ तुरीय पामिय, मिल्हि तुरय मुझ हु तुरिय, सेवक जि आजम्म, कुमर भइ सिउँरे वली हुअइँ उवरिआ कम्म ॥१७६ दूहउ रज्ज रमा रामा सुधण पाणह - सुं जइ जाइँ । तउ पणि वाचा आपणी, सुपुरिस ऊरण थाइँ ॥ १७७ षट्पद वचनि छलिउ बलिराउ वचनि कुरव कुल खोयु. ॥१७८ दूहउ गय घोडा थोडा नहीं, रह पायक बहु संख । घणीवार इणि जीवि सहु पाम्या वारि असंख ॥ १७९ गाथा श्री उपदेशमालायां पत्ता य कामभोगा० । १८० जाणीय जहा भोगिंद संपया० । १८१ पद्धडी छंद घोडानुं कहि सुं गजउं मूढ, संभलइ वत्त जइ बहु-अ गूढ । इणि जीव अणंतीवार एह, पत्तां धण जुव्वण सयण गेह | नह दंत मंस केसट्ठिरत्तं गिरिमेरु सरिस इणि जीवि चत्त । हिमवंत - मलय-मंदर - समाण, दीवोदहि- धरणि - सरिस - पमाण ॥ १८३ आहारि न पुट्टुउ जीव एहि, भवि भवि बहु परि नव-नवइ देहि । थण - खीर- नीर पिद्धां जकेवि, सायर सरि सरिय न पार ते वि ॥ १८४ बहु कामभोग सुर नरविलास, केवली न जाणइ पार तास । किणि कारण तर दुख धरइ जीव, बहु पडिय अवस्था होइ कीव ॥ १८५ गाथा जं चिय वइणा लहियं ० ||१८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520508
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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