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________________ [106] अंतर्धान थई जतां तेमनुं शरीर आंखो वडे जोई शकातुं नथी, ए ज रोते वावुनुं रूप आंखो वडे जोई शकातुं नथी, कारण के तेनुं परिमाण सूक्ष्म होय छे. परमाणु, आगमां बळीने राख बनी गयेल पथ्थर, तिर्यग् जीवोने गतिप्रदान करवानी शक्ति वगेरे द्वारा वायुनु सचेतनपणुं अनुमानथी जाणी शकाय छे. __ आ बधा करतां वधु रस पडे तेवी चर्चा वनस्पति, सचेतनपणुं साबित करवा माटे रजू थई छे. बकुल, अशोक, चंपो वगेरेमां वृक्षशरीरो तेमां जीवनी प्रवृत्ति अर्थात् चेतनपणुं न होय तो मनुष्यना जेवा धर्मोवाळी न होई शके. मनुष्यनुं शरीर जेम बाळक, कुमार, युवान, वृद्ध एवां विशिष्ट परिवर्तनो पामे छे ते उपरथी तेमां चेतन होवानी जाण थाय छे ए ज रीते आ वनस्पतिजीवोनां शरीर पण बाळ, कुमार, युवावस्था, घडपण वगेरे अवस्थामांथी रोज रोज वधतां जईने पसार थाय छे. जेम मनुष्य-शरीरमां ज्ञाननो गुण होय छे तेम शीमळो, पन्नाग, रसक, सुंदक, वच्छूल, अगस्त्य, आंबळो, काकडी वगेरेनां वनस्पति शरीरोमां ऊंघ, जागरण, अने तेनो अभाव वगेरे जोवा मळे छे. तेमनी नीचे दाटेला धननी आसपास ते वृक्षो पोतानां मूळियां वींटाळी दे छे. वड, पीपळो, लीमडो वगेरे वृक्षोमां वादळना गडगडाट, ठंडा वायुनो स्पर्श वगेरेथी अंकुरो फूटे छे. दारू पीधेली स्त्री झांझर पहेरीने पोताना कुमळा पगनी ठेस मारे त्यारे अशोकवृक्षने पांदडां तथा फूल आवे छे. युवती आलिंगन आपे तो फणसना झाडने फूल आवे छे, दारूनो कोगळो बकुलवृक्ष पर करवाथी तेने फूल आवे छे, सुगंधीदार चोख्खं जळ छंटवाथी चंपाने फूल आवे छे. त्रांसी आंखे कटक्षपूर्वक जोवाथी तिलकवृक्षने फूल आवे छे. पंचम स्वरनुं गान करवाथी शिरीष अने विरहडाने फल आवे छे. कमळ वगेरे सवारे खीले छे, ज्यारे घोषातकि वगेरे पुष्पो सांजे खीले छे. कुमुद चंद्र ऊगवाथी खीले छे. वरसाद आववानो होय त्यारे शमी खरे छे. वेलीओ वाड उपर सरकीने चढे छे. लाजवंतीने अडतां तेनां पांदडां संकोचाय छे. बधी वनस्पतिओ पोतपोतानी खास ऋतुओमां ज फळ आपे छे. आ बधुं तेमनामां ज्ञान न होय तो संभवी न शके. आ उपरथी साबित थाय छे के वनस्पतिमां चेतन होय छे. जेम मनुष्यशरीरना हाथपग कापी नाखवामां आवे तो ते सुकाई जाय छे तेम फलफूल कापी लेवामां आवतां वनस्पति-शरीर पण सुकावा लागे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520508
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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