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________________ [57] व्याधि सत्योत्तरसो उपसमें, गौतमध्यांन ऋदयमां रमें मरणघात थकी उगरई, गुरु गौतम जा सांनीध करई ॥ ५८ दीसंतो जे माहा विकराल, ते विषधर थाई फूलमाल केसरी सघला मुंकें मांन, गौतमनामइं साहिई कांन ।। ५९ जलमां बुडंतां दीइं हाथ, मारग भुलां मेलें साथ विघन उपजतां वेगई वलई, मन सुद्धई जो गौतम मिलई ।। ६० परदल आव्यां पाछां फरई, गौतमसांमि जो सांनीध करइं चोर पराछी(घी) धाउ फांसीआ, गौतमनांमई ते वप्र(?) कीआ ।। ६१ गौतमनांमें थाइं सुगाल, गौतमनामइं टलई दुकाल ईत उपद्रव मरगी जेह, गौतमनांमें नासई तेह ॥ चौदसई बावन गणधर सुण्यां, तीर्थंकर चोवीसे तणा अधीक प्रतापी गौतमस्वामि, पाप पणासई जेहनई नाम ॥ ६३ गयणांगण को तारा गणइं, मेरु अंगुल वली को नर मणइं समुद्रनीरनी संख्या थाई, गौतमना गुण कह्या न जाय ॥ प्रह उठीनई पवीत्रहपणई, गौतमना गुण जे नर भणइं श्रवणे सुणतां सुख बहू थाय, दुख दालीद्र सवी दुरई जाय ॥ ६५ संवत् सतर बत्रीसौं कहूं, आसो सुदि दसमी दिन लहूं कर जोडी कहइं शांतिदास, गौतम ऋषि आलो सुखवासो (स) ॥६६ इति श्री गौतमस्वामिरास संपूर्ण : ।। . सुदोसण मध्य लषीत्यं ॥ श्री ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520507
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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