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________________ उपाध्याय श्रीउदयविजय-रचित पट्टावली विसुद्धी संपादक - प्रद्युम्नसूरि पट्टावलीविशुद्धि ए नानो प्रकरण ग्रन्थ छे. 'विशुद्धि' पद अंते आवे तेवा ग्रन्थो रचवानी पण एक परंपरा मळे छे. आ पहेलां वि.सं. १४६६मां सहस्रावधानी आचार्य श्री मुनिसुन्दरसूरिजी महाराजे गुर्वावलि नामनो एक ग्रन्थ रच्यो तेमना समकालीनोए तेमां खामीओ जोई. ए त्रुटिओनी चर्चा थवा लागी एटले आश्रीमुनिसुन्दरसूरिजी परिवारना कोई विद्वान शिष्ये ए बधी चर्चानो रदियो आपवा संस्कृतमां गुर्वावलिविशुद्धिः नामनो ग्रन्थ रच्यो जे हमणां मल्यो छे. ए ज परंपराने अनुसरीने आचार्य श्री सिंहसूरिजीनी परंपराना उपाध्याय श्रीउदयविजयजीए प्राकृतभाषामां १०८ + ४ = ११२ पद्यबद्ध आ ग्रंथनी रचना करी छे. रचना प्रासादिक अने प्रवाही छे. रजूआत तर्कबद्ध अने संगत छे. ग्रन्थ रचवा पाछळनी पृष्ठभूमिनो संदर्भ बराबर समजायो नथी. आनी सामे कयो पूर्वपक्ष छे ते पक्षनी शी मान्यता छे ? ते जाणी शकाय तेवा साधनो मळ्या नथी पण आ ११३ गाथामांथी पसार थतां एटलं जाणी शकाय छे के ते समयमा तपागच्छमां जगद्गुरु श्री हीरसूरीश्वरजीना पट्टे विजयसेनसूरिजी आव्या तेमनी पाटे विजयदेवसूरिजी आव्या अने विजयदेवसूरिनी पाटे विजयसिंहसूरिजीने पोते पोतानी हयातीमां स्थाप्या. आ जे घटना बनी के "पोते सक्रिय हता छतां पट्टधर तरीके आ सिंहसूरिजीने स्थाप्या" तो शुं आम स्थापी शकाय खरा? एटले आ घटनाने मुद्दो बनावी जे केटलाक प्रश्नो ए वखते चर्चाता हशे ते बधाना उत्तरो आपवानो अहीं उपक्रम छे. . उपाध्याय श्री उदयविजयजीना परिचय माटे पण विशेष कांई जाणी शकायुं नथी. तेमनो सत्ता समय, गुरुपरंपरा, अन्य ग्रन्थ रचना वगेरे माटे हाल कांई मळ्युं नथी. आनी एकमात्र पोथी मळी छे. आवा ग्रन्थनी झाझी नकलो मळती नथी - विद्वानो स्वयं आ वांचीने तेना हार्दने समजे.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520507
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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