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एहवू व्यारव्यानविधि मां लिख्यूं छइ ते अयुक्त, जे मार्टि गुणस्थानक्रमारोहादिक ग्रंथइ अभव्यनि व्यक्ताव्यक्त २ प्रकारिं मिथ्यात्व कहिउं छइ ॥७॥
वली तिहां एहवू लिख्यूं छइ, जे “एक पुदगलपरावर्त्त संसार शेष जेहनि होइ तेहनि ज व्यक्त मिथ्यात्व कहिइ" ते सर्वथा न घटइ, जे माटि तेहथी अधिक संसारी पणि पाखंडि व्यक्त मिथ्यात्वी ज कहिआ छइ अनें व्यक्त मिथ्यात्व ते गुणठाणुं छइ ॥ ८ ॥
___ "अनाभोगमिथ्यात्वि वर्तता जीव न मार्गगामी न वा उन्मार्गगामी कहिइ", एहवी कल्पना करि छइ ते कोइ ग्रंथि नथी अनि इम कहतां सघलई ३ राशि कल्पाइ ॥ ९ ॥
___ "अभव्य अव्यवहारिया मां" कहिया छइ ते उपदेशपदादिक ग्रंथ साथि तथा लोकव्यवहार साथिं पणि न मिलइ ॥ १० ॥
व्यवहारिया तथा अव्यवहारिया' (?) जीव सर्व, आवलिका असंख्येय भागसमयप्रमाण पुदगलपरावर्त पछी अवश्य मोक्षिं जाइ, एहवू लिख्यूं छई, तिहां कोइ ग्रंथनी साखि नथी । साह{ भुवनभानुकेवलिचरित्र, योगबिन्दु प्रमुख ग्रंथनी मेलिं व्यवहारिया थया पछी अनंता पुदलपरावर्त पणि दीसइ छइ ॥११॥
"सूक्ष्म पृथिव्यादिक ४, तथा निगोद २, ए छ भेद अव्यवहारिया कहिइ", एहवू लिख्यूं छइ ते न घटइ, जे माटि उपमितिभवप्रपंचा, समयसारसूत्रवृत्ति, भवभावनावृत्ति, श्राद्धदिनकृत्यवृत्ति, पुप्फमालावृत्ति, धर्मरत्नप्रकरणवृत्ति, संस्कृतनवतत्त्वसूत्रादिक ग्रंथनी मेलिं प्रकट ज बादरनिगोदादिक व्यवहारिया जाणइ छइ, एक सूक्ष्मनिगोद ज अव्यवहारिया कहिया छइ ॥१२॥
"ए उपमितिभवप्रपंचादिकनां वचन, पनवणा साथि विरुद्ध अनाभोगपूर्वक एहवू लिख्यूं छइ," ते पूर्वाचार्यनी आशातनानूं वचन जिनशासननी प्रक्रिया जाणइ ते किम बोलइ ? || १३ ॥
"तथा अव्यवहारिया" आटलो पाठ हांसियामां x आईं चिह्न करीने कर्ताए मूक्यो छे पण ते क्यां उमेरवो तेनुं सूचन/चिह्न जोवा मळतुं नथी; तेथी (?) साथे अहीं उमेरेल छे.
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