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________________ [51] सुनंदा-दुक्खि बहु दुखिउ, एउ पिक्खिउ लोउ रोवंतु । वयर-कुमरु मणि चिंतवए, नयणिहिं नीरु झरंतु ॥२४॥ तउ० माइ महीयलि तित्थु सुपसत्थु, जं मनिं जिणवरिहि, गब्भवासि तिहु-नाणवंतिहि । कुमरत्तणि जो देव-गुरु नमिउ नेव तित्थयर हुंतिहि ॥ ते वि कयन्नू सिरि मउड, जणणी-चलण नमंति ॥ तिहूअण-लच्छि-निवासकर, विणय-धम्मु पयडंति ॥२५॥ तउं० राय बोलाविउ धणगिरि, पहु हक्कारि कुमारु । एह बे पक्ख पर वि पुण, लेसइ जं जगि सारु ॥२६।। तउं० माइ मन्नवि संघु अवगणीउ, तसु मत्रिण सा मनिअ वि, जेण सज्ज वर-नाण-गुण-निहि । संघिहिं मन्निइं जिण-भणिइं, तरइ जीवु संसार-जलनिहि ॥ इय चिंतवि मणु दिदु करवि, संघु पमाणु करेसु । जणणी पुणु मह नेह-वसे, लेसइ समणी-वेसु ॥२७॥ तउं० काऊण य रयहरणं, तस्स पमाणं तु धणगिरि-हत्थे । गहिऊण इमं सुंदर, लग्गसु जिणनाह-परमत्थे ॥ २८ ॥ जइ सि कयज्झवसाओ, धम्मज्झयमूसियं इमं वयर । गिन्ह लहुं रयहरणं, कम्मरय-पवज्जणं धीर ।। २९ ॥ तउ नरवइ-उच्छंग तुरि, ऊतरिउ वयरकुमारु । सिरि आरोविउ रयहरणु, जणि किउ जयजयकारु ॥ ३० ॥ पिखि पिखि प्रियतम दलि सहिउ, नाठउ जाइ मोह-राउ । बलि कीजिसु तसु वयरकुमर, जिणि संघह किउ उच्छाहु । पिखि० जीतउं चारित महाराजि जसु, जणणि-तणइ ववहारे । सदागमि सदबोधि मंत्रि, समकत्ति कीअ अमारे ॥ ३१ ॥ पिखि० पमुइउ संजमु सव्वविरइ, अनु पाणि-दया संतोसु । नाण-लच्छि संवर वरिउ, केवलसिरि हुउ तोसु ॥३२॥ पिखि० रायहिं पूइउ सयल-संघु, मह-ऊसवि वसति पहुत्तु । सुनंदा वउ लेउ सुगुरु-पासि, कीउ निअ कुलु जम्मु पवित्तु ॥३३॥ पिखि० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520506
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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