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________________ निवेदन 'अनुसन्धान' धीमे पगले आगळ वधी रह्यं छे, तेनी प्रतीति तेना आ छठ्ठो अंक तथा तेनुं सामग्री-वैविध्य जोतां थई शके । हजी ऊहापोहात्मक लेखोनी थोडीक ऊणप अवश्य आमां अनुभवाय, तो पण, आ पत्रिका-मिषे प्राचीन अप्रकट लघु रचनाओनो उद्धार थाय छे, ते पण ओछा महत्त्व तो नथी । आ साहित्य-भक्तिना कार्यमा दिने दिने विद्वानोनो वधु ने वधु सहयोग मळ्या ज करशे तेवी श्रद्धा छ । जैन साहित्य अने प्राकृत साहित्यमा रस धरावता विदेशी विद्वानो तरफथी पण 'अनुसंधान' माटे अमने प्रोत्साहक अभिप्राय मळतो रह्यो छे. पेरिसथी प्रकाशित थता - Bulletin D'Etudes Indiennes ( = भारतीय अध्ययनोनुं सामयिक)ना ११-१२मा अंकमां (१९९३-९४) तेना संपादक प्रा. नलिनी बलबीरे 'अनुसंधान ना पहेला त्रण अंकोर्नु फ्रेंच भाषामां विगते अवलोकन करतां कर्तुं छे के आ सामयिक द्वारा जे एक महत्त्वनुं काम थई रह्यं छे ते छे आ विषयमां भारत अने पश्चिमनी वच्चे एक सेतु स्थापवान : गुजरातमां थता कार्यनो त्यांना विद्वानोने परिचय मळे, अने विदेशमां थता कार्यनो अहींना विद्वानोने परिचय मळे. तेमणे अप्रकाशित कृतिओ संपादित करी प्रकाशित कराय छे, अने भाषाप्रयोगो विशे जे ढूंकीनोंधो अपाय छे तेनी पण प्रशंसा करी छे. आ अवलोकनथी हेमचंद्राचार्य स्मृतिनिधिना आ प्रयासनी उपयोगिता विदेशी विद्वानोना ध्यान उपर आवशे. • आ उपरांत स्मृतिनिधि द्वारा प्रकाशित 'प्रबंधचतुष्टय' (संपा. डॉ. रमणीक शाह ) प्रत्ये पण, प्राकृतभाषामां, सिद्धसेन दिवाकर, पादलिप्तसूरि, मल्लवादी अने बप्पट्टिसूरिनुं चरित प्रस्तुत करता पद्यमय प्रबंधो लेखे जैन प्रबंधसाहित्यमा तेमनुं जे महत्त्व छे ते ए अवलोकनमां दर्शाव्युं छे. आ समभावी अवलोकन बदल अमारा धन्यवाद. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520506
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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