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________________ [17] वंदंति, नमसंति। महारंभनिग्गहणट्ठयाए धम्मोववायं पि(पु)च्छंति । उवएसपरंपराए पडिबोहिया सत्तुंजयतित्थं पवनइ । सारावलीसुत्तं अहिज्जिऊण पडिवोहित्ता पंच वि पांडवा संवत्सरियं दाणं दाऊण दुवालसियं तित्थवंदणं काऊण नासिकउरम्मि निक्खंता । एवं समए भगवं अरिष्ठनेमी उज्जिलसिहरम्मि आगच्छिता पंचसहिए (सएहिं) छत्तीसहिए(हिं) मासिएणं भत्तेणं चेईयस्स पुरओ निव्वाणं गया। आसाढसियअट्ठमीए पुव्वन्हे । एवं सक्केहिं जाव मासं तवसक्कारिए महतित्थे समवसरणुव्व चउदुवारे अइसयाइन्ने सव्वतिहुयण पूइ(य)णिज्जे घोसिए । सासय -असासयचेईयाणं केयाणं (?) सिहरीणं । ___ कालक्कमि महतित्थंमि गोयमा ! अक्खोवविहिणा नंदणेणं आतईयभवाउ मुक्खो ॥ एवं सोऊण आवस्सयं काऊण रेवयसिहरम्मि गच्छित्ता वंदित्ता पंचहिं सक्कत्थवदंडमे(गे)हिं चउहिं थुईहिं, "नमामि नेमिनाथस्य" इच्च (इच्चाइ) चत्तारे(रि) सिलोगप्पमाणाहि वंदित्ता, पुणो कयंजलिउडो भगवउ पायमूले ते(ति)त्थाइसयं पुच्छइ । नेमि ॥ छ?(ट्ट)देसउ ।। सारावलीगंडिया भाणी(णि)यवा (व्वा)एयं सोऊण सुयं गणहरवग्नेहिं गोयम (मु ? )ज्जुत्तो । वीरवरस्स भगवओ का[ऊ]णावस्सयं चलिउ ।। वंदित्ता उसहजिणं काऊणं मासकप्पं(प्प) विहिणाण (णाणं ?) । सित्तुंज्जे गच्छित्ता रेवयं (य)सिहरम्मि वंदित्ता ॥ अप्पाणं भावितो पुंडरीइं (रियं) [सं]थुण(णे)इ भत्तीए ॥ "विमि (त्ति बेमि ?)।। इत्थंतरे बारवईपलयकालमारब्भ भगवंते निव्वुए ति(वि)सयस्सुवरि कालसंदीव-नंदि -चंदिप्पमुहेहि मिच्छट्ठिीहि उवसग्गे | बंभिंदपडिमा भरहठाविया कंचणगुहाए ठाविया मज्झे पूयणिज्जा जाव चउरो सहस्सा अरिहउ अरिटुनेमिस्स निव्वुयस्स पंडवपुत्तेहि कयं चेईय(य)लेवमई पडिमा निव्वाणसिलाए कारिया पट्ठविया य। वारवई पलयकालाउ आरंभ(आरब्भ) इत्थ पव्वए सुर-गंधव्वाई-या खिल्लंति मणुयाणं दुग्गमपवेसं(से)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520506
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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