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________________ [13] खित्तं वत्थं (त्थं) हिरनं च पुत्तदारं च वांधवा | चइत्ताणं इमं देहं ग (गं) तव्व मवस्सं (सस्स ) मे ॥ जहा किंपागफलाणं परिणामो न सुंदरी । अद्धाणं जो महंतं सु आवाहि । जा एव - ई (?) | गच्छंते से दुही होइ छुहा तिहाइ पाडि (पीडिउ ) एवं धम्मं अकाऊणं जो गच्छइ परभ (ब्भ) वं । गच्छंती सो दुही होइ वाहीरोगेहि पीडिउ || अद्धांण जो महंतं तु सुखाहि ( ही ) जो पज्जई । गच्छ (च्छं) ते से सुही होइ अप्पकम्मे अवेयणे ॥ तहा गेहे पतिलित्तंनि (पलित्तम्मि) तस्स गेहस्स जो पहू । सारभंडाण नीणेइ असारं अवइ ( उ ) ज्झई | एव लोए पलित्तम्मि जराए मरणेण य । अप्पाणं तारइस्सामि तुम्हेहिं अणुमन्त्रिउ || " (उत्तरज्झयणस्स इमाओ गाहाओ ) एवं चितिय भासित्ता जाव भगवं ता गलियअंसुपब्भारलोयणे सयणवग्गं हियए आरसंताण हरिण - रोज्झ - शंवर - रुरु - अज-गद्दरय (द्दभ) पमुहाणं क्खाणा ( रक्खणो ? )वाए जाव पलोएइ, ताव खणेण वंधणाणि मुक्काणि । सद्वाणं गच्छंति, सव्वेवे (ए ?) । खेयरा वि सव्वे गयणंगणं पत्ता जय जय भद्दे (सद्दे) कल कल भ (स) द्दे कुसुमवुट्ठीए उज्जंति - अहो भगवंतो ! कस (रु) णा (?) समुद्दा । एवं खणे उग्गसेण तोरणंसि मंगल्लकम्मंसि गीयमंग [ल] खेल्लम्म जावय (यव) - जायवीहिं उहिं ( ? ) उब्भोडमाणेहिं सुरी (र) जक्खरक्खसकिंनरकिंपुरिसमहोरगा (ग) वग्गेहिं पलोयमाणेहिं अदब्ममसि (सिं) गार भूसिं (सि) याए राइमईए सयंवर हत्थमालाए भगवंते सारहिं सद्दावित्ता पत्थगेयं कारविंति । (?) जाव निम्ममोहे (निम्मोहे) निरंजणे नीरागदोसे निव्विए (ण्णे) तिहूयणच्छेरयभूए विम्हियजायवजायवीवयण -पडिचोयणासंवाहणराइमईउवालंभेहिं नभं व वेगपव्वयमाणेहिं सवत्सरियं दाणं दाऊणं वरवरियं घोसावित्ता सव्वं जायववग्गं संवोहित्ता दिक्खासमयंसि अभिसेयपुरस्सरं देवासुरमणूयवाहिणीइ सिवियाए वारवईए मज्झमज्झेणं दिव्यमंगलधुणीहिं गीयमाणे रेवयगिरिसिहरम्मि छत्तसिलाए छत्त (त्तं) ठवित्ता राइमईए सु (स) ह सहस्से पडिवोहित्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520506
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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