SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [113] चर्चापत्र स्नेही श्री भायाणी साहेब 'अनुसंधान 'नो ताजो अंक (१९९५) स्नेहपूर्वक तमे मोकल्यो ते मने समयसर मळ्यो. एनो केटलोक भाग हुं जोई गयो छु. तमारो आ उपक्रम सरस छे, अने तमे जे चीवटथी ए चालु राख्यो छे ते माटे तमारी प्रशंसा घटे । १. पृ. ८४ पर तमारो 'मन'नो खुलासा करती पूर्ति छे. तमारा मंतव्य मुजब 'मन' मां निषेधवाचक 'म'नी साथे भारवाचक 'न' जोड्यो छे. भारतीय भाषाओमा अनुरोध के आग्रह दर्शावतो 'न'नो प्रयोग मळी आवे छे ते पर तमे ध्यान खेंच्युं छे I पूना - ४ ता. ११-१२-९५ 'करो-न' जेवा प्रयोगोमां मूळमां आ 'न' अनुरोधसूचक हशे के ? मने एम लागे छे के एमां एक वाक्यनो संकोच थयो छे. एटले के मूळमां वाक्य आवुं बोलातुं हशे : 'तमे आ काम करशो के न करशो?" अंग्रेजीमां जेम कहेवाय छे ‘You would do it, won't you ?' आगळ जतां 'के न करशो ?' नुं संक्षिप्त 'न' एटलुं ज रह्युं, मारी आ मात्र एक कल्पना छे । 'मन' नो खुलासो बीजी रीते थई शकशे के ? एमां निषेधदर्शक 'मा' अने 'न', बनेने एकत्रित कर्या छे ? २. 'अनुसंधान' छापवा माटे वपराती देवनागरी लिपि मने ठीक लागती नथी. देवनागरी साथै सारो परिचय होवा छतां, काम चाले पण गुजराती भाषामां थयेलुं लेखन देवनागरी लिपिमां वांचतां मने सहेलाई लागती नथी. गुजरातीने बदले देवनागरी लिपिनो उपयोग करवानुं कारण तमे कदाच पहेला अंकमां आप्युं हशे. कदाच आ मारी एकलानी कठिनाई हशे कुशळ हशो. Jain Education International लि. म. अ. मेहेंदळे [मारा मित्र डो. मेहेंदळेने 'अनुसंधान' उपयोगी लाग्युं तेथी अमारा उत्साहनुं संवर्धन थयुं छे. 'म-न’नो तेमणे सूचवेलो खुलासो विचारणीय छे. वैदिक उपमावाचक 'न'नो खुलासो पण 'नळं न भिन्नममुया शयानो' 'जाणे के नाळ तूट्युं न होय तेम सूतो' - जेवामां आवो ज अपायो छे. नागरी लिपिमां गुजराती लखाण आपवानो हेतु पर प्रान्तना के विदेशी वाचको गुजराती लिपि करतां नागरी लिपिथी परिचित होईने केटलेक अंशे भाषा समजी शके एवो छे. ह. भायाणी ] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520506
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy