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________________ [108] तेह-नई दीजइ। ति वारं मोटु एक पट्ट कराविउ । पणि महा विशिष्ट वली कलावंत चित्रकर एक तेडाविउ । कौंती-ना रूप-नी चित्रामि चीतरिवा-नी वात जणावी । ति वारं चित्रकि कहिउं - महाराज, कौंती-ना रूप-नु लवकेश एक सिउं कुणहिइं चीत्राइ छइ, जइ वृहस्पति आवइ तुहइ ? पणि तुहइ तम्हारई आदेशि करी जिसिउं जाणिसु तिसिउ पट्ट नीपाइसु ।' 'तु नींपाई। (चउपई) आंण्या हींगलोअ हरीआल पंच-वर्ण वानां सुविसाल रस कीजइ तिहां एकि रूपमइ वली नींपना एकि कनकमइ कौंती भणइ रूपि अहिमांणि सकल शरीर देह-परमाणि लिखिउं रूप सरसइ-आधारि जिसी अवर नारि न संसारि । कोरक-नामि पाठविउ दूत विद्या-कला जि गुण-संजुत्त अंतर-गति आपिया अविभेउ चालिउ कोरक ते पट लेउ पूरव पंथ फिरिउ नेपाल अंग बंग नइ तिलंग डाहाल मरहठ सोरठ सहि नंमीआड गूजर मरु मालव मेवाड कौंती जोगि नही कइ भूप सूरवीरपण गुणि अनुरूप कुणहिइ एक नैमित्ति विसेसि कोरक वही गयउ कुरुदेसि १६५ गयपुरि पाटणि गयु सुजांण राजपाटि कां रांणोरांणि गांगेउ सहि पिक्खीअ पांडु अनुपम रूप अनइ बलवंड दीठउ विदुर अनइ धृतराष्ट्र अपर राय-सुअ सई साताठ जिसिउ पांडु गुणि रूपिहि होइ तिसिउ अवर नवि दीसइ कोइ नव-जोवण नव-नेह-गुणेणि कोरक-नुं मन बइठु तेणि वात जणाविउ तिणि गांगेउ पट्ट दाखि भाखिया सवि भेउ गांगेउ तिणि बइठु मंन्न पांडु-कुमर-रहई कहि उववंत्र मई ए दीर्छ रूप मझ गमइ जइ ताहरु चित्त इणि रमइ कुमर न बोलिउ कंन्या गमी ऊठिउ गांगेउ-पय नमी कोरकि पांडि करी अवलि वात मेलि विवाह म करिजे चात्र १७० कोरक-साथि जे जण जांण कंन्या जोई करे प्रमाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520506
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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