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________________ - - विश्वोपकार-करुण-दयामय - सागर ॥ जैन-धर्म्म - रक्त । एक मिथ्यात्व - ऊपरि विरक्त । सत्य वार्ता भाखर । असत्य बोली न दाखइ || धुरलगइ (१ख ) स्यंघ - नां परि(?) क्रम । विद्या- कला - ऊपर उपक्रम | जांण- वेता भरह - वेता सोभाग-सुंदर । जांणे किरि को एक देव-नु कुमर || देव भगत, गुरु- भगत, संघ-भगत, माता-भगत, पिता- भगत ॥ पात्र कपटंतर जांणइ । धर्म्मवंत वखांणइ || साधु प्रसंसइ । दुष्ट रहई सिख्या दिइ । छल-छदम न गमई । जूइन रमई | अखाद्य न खाई। अपेउ न पीअई | स्त्री - संग न करइ । अहंकार न करई ॥ पणि जेतलु केतलु अजुगति-नुं करणहार, कूड - कपट-नु धणी चोर-चरड, खूंट- खरड, सात व्यसन-नु सेवणहार, तेह - नई सिख्या - दान दिइ ॥ तिणि करी अनेक विद्याधरनां कुमर - नई अणगमतु थिउ । महा-दुर्दात किर विद्याधर-ना कुमर वैभाष्य बोलई, गालि दिई, अकुलीन कहई । ए भूमि - गोचरु बोलीअहं जे (? जइ) सकुलीन हुई ते मुंहसालि कांई रहिसिई ॥ इसी वार्त्ता सांभली सांसहइ नही । मुहकम मारइ । सव - कहि रहइं दुर्जेअ । तिणि करी गांगेउ - कुमर - ना ओलंभा आवई । पुत्र - तणा उपालंभ गंगा सही न सकई । ते उपालंभ बीहती पुत्र लेई करी पर्वत - थिकी ऊतरी तिणिई जि वन-खंडि आवी वास कीधु । गंगा - नइ गांगेउ-तणे गुणे करी संत साधु श्रावक लोक घणा वसिया । तिहां सदा चारण श्रमण - महात्मा आवई । गरूई नगरी मंडांणी, चतुर्दस - योजन - भूमिका - प्रमांण । ते नगर - पाखलीआ गरूउं वन-खंड बोलीअइ । सदापल वृक्ष । कुर्बक तिलिक अशोक चंपक प्रियाल साल रसाल तमाल किरमाल । प्रियंग पतंग नाग पुन्नाग । नालीअरि केलि फोफलिणि खारिकी खजूरी करणी जंबीरी नारिंगी बीजुरी राजादन अखोड बादांम ताल अंब जंबु प्रमुख अनेक शाड्वल वृक्ष पुष्पित मुकुलित । सदा फल - फुल्लि करी ते वन- खंड विराजमान, महा संशोभायमांन । पुष्पजाति वली राय-चंपक कणय - केतकी सुवर्ण मालती सेत्र जाइ ढूंढणीआ वेअल कुंद मुकुरंद मुचकंद माकुंद तेहने परिमलि करी मघमघायमांन । वली सांमली सेलडी गूंडगिरी - तणा वाडा तेहे अक्ष- रस शर्करा - रस नीपजई । किसिमि द्राक्षा- वल्ली नागवल्ली - तणा मंडप तेह - नी शोभा ॥ ते वन- खंड -माहि नदी - ना प्रवाह । चतुर्मुख महा मनोहर कुंड वापी Jain Education International [77] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520504
Book TitleAnusandhan 1995 00 SrNo 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages96
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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