SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कलपतरु जिम वाधइ कुमर कय जिम बीज-चंद कय अमर । गांगेय-तणा गुण निम्मला दिणि दिणि जास चडंती कला ॥ वलि कित्तावा(१)सुरपुरि गया राइ अहेडी बोलाविया । ते आविया किहि ले कूतिरा रिमिझिमंति पाए धूवरा ॥ ५८ हवं बोली स्यांतन-राजा-तणइ राजि राजा-तणइ आदेसि गजेंद्र गुडीअई छई ।। एक मयगला मद्यपान करावी करावी मदोन्मत्त कीजई छई ॥ तुरंगम पाखरीअइ छंडा एकि तुखार-तणी खुरी लोह-पात्रि जडावीअई छई । अनेक महारथ सज कीजइं छइं । ते(हिं) भिंडमाल-प्रमुख आउध भरावीअई छई। कुंण कुंण आउध ? भला भिंडमाल, एकाधीआ करवाल । जम-तणी जिह्वा-तणी जिसी कटारी, काला कंकलोह-नी छुरी ॥ जिसिउ वीज-तणु झात्कार, तिसी तरूआरि । एक मुहर, जे थड(घड?) नीपजइ लोह-तणे भारि ॥ एकि बोलीअई पट, जिसी केसर-स्यंघनी हुई चपेय । कोदंड धनुष, तीर, तर्कस, तोपीर, भाथा । षखंड पृथ्वी-तणा साधक खा ॥ पाशु, परशु, फुरी, गोफण, जोड, कमांण, सब्बल, सांगि, सेल । कुंत, लकुट प्रमुख इसां छत्रीस डंडाउध ।. तेहे रथ भरावीअई छई । इसी सजाई देखी देवी गंगा ससंभ्रांत हुई अछइ । ए एवडु आरंभ-संरंभ सिउ नीपजइ बरी(?) ॥ वइरी केऊ मलिया जांणीअइं नही । परच क्रागम-तणी वार्ता कह नही । अकस्मात ए गय-नइ किहां ऊपरि सजाई ? इसिइ प्रस्तावि केइ एक प्रधान पुरुष राणी पूछवा लागी छइ । ते कहई छई, मात, सांभलुं वात । ए राजाधिराज महामंडलेश्वर ।। एह-नई बालापण पापरिद्धि-कर्म आखेटक-नउं व्यसन छइ । तम्ह परणियां पूठिइं एतला दिन वीसरी गिउं हतुं । कुणहिई एकं व्याधि मृग-तणुं आमिष्य आंणी भेट कीधी हती । [75] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520504
Book TitleAnusandhan 1995 00 SrNo 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages96
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy