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________________ ॥२६॥ ॥२७॥ ॥२८॥ जिम दीवहं धुरि जंबूनामि, तिम गणहर-धुरि गोयम सामि ॥२३॥ बीजी पोरिसि बइसी, जिणवर-पयठाणी । गोयम करइ वखाणू, अमृतोपम वाणी ॥२४॥ जिम जिम मुणिवर तत्तु पयासइ, संखातीत भवंतर भासइ । तिम तिम लोयहं मनु इम डोलइ, इहु छदमत्थु कि केवलि बोलइ ॥२५॥ सुयकेवलि भगवंतो, सो साहु मुणेई । तहवि जिणेसर वयणू, आदरि निसुणेई जाणंतेवि ण गणहरराय, वीर जिणेसर आगलि थाय । परहित-हेतु जि पृच्छा कीधी, गोतमपृच्छा ते सि(सु)प्रसिद्धी ॥२७॥ मुनिपति अति-अप्रमत्तो, छट्ठि तपु पारइ । बहुविह लबधिसमिद्धो, जगि जसु विसथारइ गुणिहिं न गोयम को तुडि पावइ, पुण मुझ मनि एहु कउतिगु भावइ । इसी भगति जिणवर जु वहेइ, सो जि किम केवल न लहेई ॥२९॥ सालपमुह जे सीस, देषी सुणी राए । ते सवि केवल(लि) हूवा, गोयम सुपसाए चंपापुरि जिणवर पणमेवी, सीसहं केवलनाणि मुणेवी ।। गोयमु चिंतइ किसउ विनाणू, एकु जि हडं न लहडं वरनाणू ॥३१॥ वस्तुः चरमजिणवर चरमजिणवर पढमवरसीसु । निसिदीस जिणपयकमला-रायहंससम सरिसु सोहइ । सुहज्झाण-सुयनाण-गुणि अमियवाणि जणचित्त मोहइ ॥ जे जे दिखइ सीस तहिं, पावइ केवलनाणु । [ब]पुरे ! गोयमगुरु सकति, अणहूंतउ दे दाणु ॥३२॥ त्रितीय भाषा ॥ जो नियसकति प्रमाणू ए अष्टापद तीरथ नामू ए । सो नस... [के]वलनाणू ए, निच्छइ होस्यइ एणि भवे ॥३३॥ इसउ अरथु वखाणी ए, देसण करि जं रहिय जिणु । सुरहं वयण तं जाणी ए, गोय[म]...त कंठि...ए ॥३४॥ अष्टापदि तिणि ताली ए, क्रमि क्रमि त्रिहुं पावडिय लगे । ॥३०॥ [60] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520504
Book TitleAnusandhan 1995 00 SrNo 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages96
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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