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________________ कांई छे नहि. अनुमानतः १५मा शतकनी होवा कल्पी शकाय. ७५मी अंतिम गाथामां निर्देश छे ते प्रमाणे, रासना कर्ता रत्नशेखरसूरि छे, अने थिरपुर-थरादमां, सं. १४०५मां तेमणे रास रच्यो छे. पोताना गच्छ के गुरुनो नामोल्लेख कर्ताए नथी कर्यो. अनुमानतः "सिरिसिरिवालकहा"ना प्रणेता रत्नशेखरसूरि ते ज आ रासना पण कर्ता होय, तो शक्य छे. ___ आ रचनाने विनयप्रभवाचकना गौतमरास साथे सरखावी जोतां आ रचनानी छाया ए रचना पर केटलेक अंशे पडी होवानुं अनायास जणाई आवे छे. बन्नेनी विगतवार तुलना करवी रसप्रद बनी रहे. भाषा, ढाल वगेरे विशे तो डॉ. भायाणी जेवा तज्ज्ञ ज प्रकाश पाडी शके. अत्यारे तो आ कृति, अने तेमांना केटलांक कठिन तथा पारिभाषिक जणाता शब्दोनी एक नानी सूचि- आटलुं ज अहीं प्रस्तुत थाय छे. ॥१॥ श्री रत्नशेखरसूरिविरचित श्री गौतमस्वामिरासः ॥ ...तुम माइबीउ सिरिवन म(स?)हुत्त । . हिययकमलि झाएवि वीरु जिणवर अरिहंत ॥ पभणिसु गोयमसामितणुउ गुणसंथव-रासो । जि... इ होइ भवियलोय मणि धरि उल्लासो प(पु)हवि-पसिद्धइ मगहदेसि वर गुब्बर नामु । सार सरोवर कूव वावि धणि कणि अभि [रामु] । [इ] ह निवसइ वसुभूइनामि दियराउ पसिद्धउ ... ... ... ... ... ... ...वंसु बहुरिद्धि समिद्धउ तेह तणइ घर घरणि पुहविनामिइ सुपहाणी निम्मलसील पवित्त गुत्त... ...सीताराणी । तासु कुच्छि सिरिरायहंसु पहिलउ इंद्रभूइ नंदण बीजउ अगनिभूइ तीजउ वाउभूइ तेजि सहोयर कण[यवन्न पडिवन्न सरीरा ॥२॥ ॥२॥ ॥३॥ [57] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520504
Book TitleAnusandhan 1995 00 SrNo 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages96
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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