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________________ ॥४॥ ॥७॥ ॥९॥ णणु दव्वथया अहिओ भावथओ संथुओ अ समयम्मि । ता होउ असामइअं अलं खु पासायपमुहेहिं सच्चं पुण सामइअं अहिअं अंसेण सव्वहा नेव । रययापव्वयपुंजा गुंजा-कणयं जहा अहिअं ॥५॥ अहवा देवभवाओ मणुअभवो उत्तमो . उ अंसेणं । तेणेव य देवभवो मणुअभवे उत्तमो भणिओ ॥६॥ जो पुण जइ(ई)ण भावत्थओ अ सो सव्वविरइसब्भावो । सव्वप्पयारपउरो असेसवव्वत्थयापउरो जह कणगकूडलंकिअ- वेअड्ढो सव्वओ स रययमओ । कंचणगिरितुल्लत्तं नो पावइ कहवि तुंगो वि ॥८॥ सावयभावथओ पुण मुणिदव्वथउव्व होइ अप्पयरो । अविवक्खाए दुन्नवि कमेण दुण्हं पहापहिआ दीवो दिणयरअणुओ ससिणेहो गुत्तठाणि गेहमणि(णी) । जगचक्खू पुण सूरो णेहंजणवज्जिओ वि भवे एवं जो उवएसं सपुव्वपक्खाइपेरणापुव्वं । दाउण य समणधम्मे उज्जुत्तं (ते) कुणइ धम्मिजि(ज)णे ॥११॥ दुब्बलया मुणिधम्मे जइ तेसिं सावयाण धम्मेवि । जं जं जस्स य जुग्गं आगमरीईइ उवदिसइ ॥१२॥ कप्पटु(दु)म-कामकुंभ-प्पमुहा पहुपायसेवणं पत्ता । लंछ (?)णमिसेण छलणा महिमोवाओवलंभट्ठा ॥१३॥ विणयाभावा अज्ज वि अपूरिअमणोरहा य पयमूले । चिटुंति जस्स तस्स य पयसेवा होउ मह सहला एवं सिरिहीरविजय-गुरुमुहदहजम्मभारई गंगा । पावहर-धम्मसायर-संगइआ जयउ जणपुज्जा ॥१५॥ इति समग्रमुद्गलाधिपतिनिजभुजयुगलबलविदलितवैरिराजराजितति पातसाह श्रीअकब्बर-प्रदत्त-प्रसिद्ध त्रिजगत् (द)गुरुबिरुद सकलसूरिराजराजि राजिचूडामणीयमान श्री श्री श्री हीरविजयसूरीश्वरस्वाध्यायः ॥ ॥१०॥ ॥१४॥ [50] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520504
Book TitleAnusandhan 1995 00 SrNo 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages96
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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