SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥१५॥ ॥१६॥ ॥१७॥ ॥१८॥ ॥१९॥ ॥२०. ॥२१॥ सयगे पुण विगलाणं एगिंदीणं च सासणं इटुं । न पुणो मइसुयनाणे तहेवमावस्सए वुत्तं सीहो तिविठ्ठजीवो जाओ सत्तम महीउ उव्वट्टो । जीवाभिगममएणं मीणत्तं चेव तो लहइ नायासुं पुव्वण्हे दिक्खा नाणं च भणियमवरण्हे । आवस्सयंमि नाणं बीयम्मि मल्लिस्स छउमत्थे परिआओ सद्धछम्मासबारससमाओ । मग्गसिरकिण्हदसमी दिक्खाए वीरनाहस्स वइसाहसुद्धदसमी केवललामम्मि संभविज्ज कहं । इय सत्थेसुं बहवो दीसंति परोप्परविरोहा तस्संभवे वि आवस्सायाइ सत्थाई जह पमाणं । तह किं महानिसीहं धिप्पइ न पमाणबुद्धीए अहो पंचनमोक्काराइयाणमुवहाणमुणुचियं भिन्नं । आवस्सयस्स अंतो पाढाहि तहाहि सामइयं नवकारपुव्वयं चिय कीरइ जं ता तयंगमेसो त्ति । अन्नं च इत्थ अत्थे पयडं चिय कित्तियं एयं नंदिमणुओगदारं विहिवदुवग्धाइयं च नाउण । काऊण पंचमंगलमारंभो होइ सुत्तस्स। इय सामाइअनिजुत्तिमज्झमज्झासिओ इमो ताव । पडिकमणे य पविट्ठो इरियावहियाए पाढो वि अरहंतचेइयाण य वंदणदंडो सुयत्थओ य तहा । काउस्सग्गज्झयणे पंचमए अणुपविट्ठो त्ति बीयज्झयणसरू वे चउवीसत्थओ वि जं विणिहिट्ठो । आवस्सयाउ न पिहो जुज्जइ ता तेसिमुवहाणं आवस्सयउवहाणे ताण उवहाणं कयं समवसेयं । कयउवहाणे य पिहो तक्करणे होइ अणवत्था भन्नइ उत्तरमिहई नवकारो आइमंगलत्तेण । वुच्चइ जया तयच्चिय सामाईए अणुप्पवेसो से ॥२२॥ ॥२३॥ ॥२४॥ ॥२५॥ ॥२६॥ ॥२७॥ ॥२८॥ [36] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520504
Book TitleAnusandhan 1995 00 SrNo 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages96
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy