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('शीलोपदेशमाला'नी सोमतिलकसूरिकृत टीका 'शीलतरंगिणी'मां अने तेने आधारे 'भरतेश्वरबाहुबलिवृत्ति'मां शुभशीले करेल रूपांतरमां ए मळे छे)ना कथावस्तु साथे अभिन्न होवानुं में The Lost Sanskrit Drama Puspadūsitaka and the Story of Nandayanti in the Jain Tradition ए पुस्तिकामां (१९९४) दर्शाव्युं छे: तेमां में पण ए नोंध्युं छे के सगर्भा थयेली कुलीन नायिका पर कुलयपणानो मिथ्या आरोप, तेनो निर्जन वनमां परित्याग अने अंते तेना चारित्र्यनी शुद्धिनी प्रतीति–एवा प्रकारकथाघटक सीता, शकुंतला, अंजनासुंदरी, कलावती वगैरेनी कथामां पण मळे छे.
१८मी शताब्दी जाणीता कवि शामळ भट्टे रचेल 'सिंहासनबत्रीसी'नी २३मी वार्ता 'भद्राभामिनी'नो एक भाग आ ज कथाघटक उपर आधारित छे, अने अमुक अंशे 'नंदयंती'थी ते प्रभावित होवानुं कही शकाय. 'शरदपूर्णिमाए स्वातिनक्षत्रनो योग होय त्यारे गर्भाधान थाय तो, छींक खातां जेने रतन झरे एवो लक्षणवंतो पुत्र जन्मे.' हंसदंपतीनां एवां वचन सांभळी परदेशे वहाणमां रहेलो शेठपुत्र कस्तूरचंद हंस पर सवार थई एक रात माटे पोताने घरे पाछो आवी पत्नी भद्रा साथे संगम करी पाछो फरे छे. सगर्भा बनेली भद्राने सासरिया काढी मूके छे. माबाप तेने वनमां मूकी आवे छे. लाखा वणझारानी सहायथी ते बची जाय छे. पछी एक गणिका तेने फसावे छे अने परदुःखभंजन विक्रमराजानी सहाय मेळवी ते छूटे छे. पतिपुत्र साथे तेनं मिलन थाय छे. आमां एक खास नोंधपात्र विगत ए छे के कस्तूरचंद वेपार अर्थे त्रंबावतीथी जावा जवा नीकळे छे, त्यारे पुष्य नक्षत्र, मुहूर्त जोईने वहाण हंकारे छे. 'पुष्पदूषितक मां पण वहाण जे दिवसे छूटवानां छे तेनी आगली राते चंद्रनो पुष्ययोग होय छे, अने आ विगत 'पुष्पदूषितक मां पायानो भाग भजवे छे. में करेलुं सूचन के नाटकनुं खरं नाम 'पुष्पदूषितक' नहीं पण 'पुष्यभूषितक' होय तेने आ विगतथी आडकतरं समर्थन मळे छे. ___भद्राभामिनी'मा आगळनो अने पाछळनो भाग बीजा जाणीता कथाघटको उपर आधारित छे.पहेला भागनां (पत्नीनी शीलपरीक्षा माटे गुप्तवेशे सासराने घेर रहेतो शेठपुत्र) मूळ तो ठेठ 'वसुदेवहिंडी'ना धम्मिलचरितमां आपेली
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