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________________ एवो अनुवाद आप्यो छे, पण 'the Jinaraja' द्वारा एमने शुं अभिप्रेत हशे ते कही शकातुं नथी. जो भगवान महावीर अभिप्रेत होय तो ते योग्य नथी केमके अहीं ए कंई कथा कहेनार नथी. सुतविरहइ दुख मातनउ जी, कहि न सकइ कविराज, जाणइ पुत्रवियोगिणी जी, इम जंपइ जिनराज रे. (२३.१५) अहीं पण अर्थ स्पष्ट छे : माताने पुत्रना विरहे जे दुःख थाय छे ते कोई कवि न कही शके, ए तो पुत्रवियोगिनी माता ज जाणे - एम जिनराज (कवि) कहे छे. अहीं पण बेन्डर “so says the Jinaraja' एम अनुवाद करे छे एमां अस्पष्टता रहे छे. भगवान महावीरनो निर्देश तो संभवित नथी ज. ___ केटलेक स्थाने देखीतो 'जिनदेव'नो अर्थ होय तोपण 'जिनराज' शब्दमां कविए श्लेषथी पोतानु नाम गूंथ्युं होय ए संभवित छे. जिनराजसूरिना एक 'शालिभद्र गीत' (जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि, पृ.६८-७०)ना केटलाक उद्गारो 'सालिभद्र-धन्ना-चरित मां ए ज शब्द रूपे मळे छे ए हकीकत पण 'सालिभद्र-धन्ना-चरित' जिनराजसूरिनी रचना होवानी वातने समर्थित करे छे. जुओ : शालिभद्र गीत : जाणइ पुत्रविजोगणी जी, जे दुःख कवि न कहाइ. छाती लागी फाटिवा जी, नयणे नीरप्रवाह. हरख न दीधउ हालरउ जी, वहूअ न पाडी पाइ, ते वांझणि होई छूटिस्यइ जी, हुं किम गान गिणाइ. १३ साल तणी परि सालस्यइ जी, ए मुझ अहीठाण. सालिभद्र-धन्ना-चरित्र : छाती लागी फाटिवा जी, नयणे नीरप्रवाह रे. [12] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520504
Book TitleAnusandhan 1995 00 SrNo 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages96
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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