________________
नीचेना अपभ्रंशभाषाना पद्य वडे रजू करे छे (ए पद्य सात चरणना, द्विभंगी प्रकारना रड्डा छंदमां होवानो ख्याल न आवतां, तेमां चरणो खूटता होय तेम मानी पाठ अपायो छे, पण भूल छे. पाठ शुद्ध ज छे, अने ते नीचे प्रमाणे छे) :
ते
धम्मु सामिउ सयल - सत्ताहं,
विणु धम्मिं नाहि धर, धन्नु धणु धम्मह पसाएण । धम्मक्खर बाहिरिण, धिसि धिरत्थु तेण जाएगा || धरणिहि भारु करतेण, पय- पूरण- पुरिसेण ।
किउ संसारि भमंतेण, धम्मु सुमित्तु न जेण ।। (पृ. १७१, गा. २०-२१नी वच्चे) 'धर्म सर्व प्राणीओनो स्वामी छे; धर्म विना धरानुं अस्तित्व नथी; धर्मनी कृपाथी ज धनधान्य प्राप्त थाय छे; जेणे संसारमा भ्रमण करतां, धर्मने सन्मित्र नथी बनाव्यो तेवा, धर्माक्षरनी बहार रहेला, मात्र पादपूरक समाए पुरुषना जन्मने धिक्कार छे, धिक्कार छे.' आ साथै स्वयंभूकृत 'स्वयंभूछंद' मां ( ईसवी नवमी शताब्दीनो अंतभाग) आपेल रड्डा छंदनुं उदाहरण सरखावो :
. जेण जाएण रिउ ण कंपंति,
सुणा - विदति णवि, दुखणा-वि ण मुअंति चिंतए ।
. तें जाएं कमणु गुणु, वर- कुमारी - कण्णहलु वंचिउ || किं तणएण तेण जाएण, पअ - पूरण- पुरिसेण । जासु ण कंदरि दरि विवरु, भरि उव्वरिउ जसेण ||
'जेना जन्मवाथी शत्रुओ कांपता नथी, सज्जनो आनंद पामता नथी, दुर्जनो चिंताथी मरणतोल थता नथी, एवा मात्र पादपूरक पुरुष जेवा, कोई सुंदर कुमारीना कन्याभावना निष्फळ लोपक बननारा, जेनो यश कंदरा, गुफा अने बखोलने भरी दईने पण हजी शेष बचतो न होय, एवा पुत्रना जन्मवाथी शो लाभ |
आमां 'धिरत्थु तेण जाएण' ('किं तेण जाएण' ) अने 'पअ - पूरण- पुरिसेण' ए शब्दो समान छे. स्पष्टपणे पुत्रविषयक स्वयंभूना सुभाषित उपरथी आम्रदेवसूरिनुं धर्मविषयक सुभाषित घडायुं छे.
Jain Education International
[44]
For Private & Personal Use Only
ह. भायाणी
www.jainelibrary.org