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अबाह
'गुर्जररासावली' मां अबाह शब्द आ प्रमाणे वपरायेलो छे :
तापिइं पीडिउ विलवइ अबाह.
संपादकोए अबाहना मूळमां बाहु शब्द मानी एनो अर्थ 'without hands' (हाथ विना) एवो आप्यो छे. आ अर्थ अहीं असंगत छे ते सहेलाईथी समजाय एवं छे. रडवानुं वळी बाहु विनानुं के ? ए स्पष्ट छे के अबाध परथी अबाह आवेलो छे ने एनो अर्थ थाय 'अंतराय विना, अत्यंत, खूब' : 'तापथी पीडवामां आवेलो ते खूब विलपे छे. '
एनवाईनी बात छे के अन्यत्र अबाहु शब्द वपरायेलो छे त्यां संपादकोए एने अबाधमांथी व्युत्पन्न करी एनो 'without obstacle, freely' (अन्तराय विना, विघ्न विना मुक्तपणे) एवो आप्यो छे. निर्दिष्ट प्रयोगो आ प्रमाणे छे :
(१) पांचि पंचाले लिउ सनाहु, आविउ घडूउ कूंयरु अबाहु (२) धाई धसई ते ऊधसई, विलसई हसई अबाहु
बीजा उदाहरणमां 'मुक्तपणे' अर्थ चाली शके तेम छे पण 'अन्तराय विना' एटले 'खूब' ए अर्थ पण करी शकाय ः 'मुक्तपणे खूब हसे छे.' पण पहेला उदाहरणमां ए अर्थ योग्य रीते बंध बेसशे नहीं. त्यां अबाहु कुंवर घटोत्कचनुं विशेषण छे. एटले 'जेने कशी अंतराय नडतो नथी एवो वीरपुरुष, अप्रतिरोध्य' एवो कईक अर्थ लेवो जोईए एम लागे छे : ' अप्रतिरोध्य घटोत्कच कुंवर आव्यो.'
अभोखउ आभोखउ, अभोखण
राजशीलकृत ‘विक्रमखापराचरित्र' (संपा. कनुभाई शेठ, धनवंत शाह ) मां अभोखु शब्द आम वपरायेलो छे :
खापरउ जाम पहुतु बारि, दीयउ अभोखु पाणीधारि.
संपादके अभोखुनो 'अपोषण' अर्थ आप्यो छे. 'अपोषण' (सं. आपोशान) एटले जमती वखते, आरंभे के अंते आचमन लेवुं ते. अहीं ए अर्थ केवी रीते संगत बने ? भोजनप्रसंग तो अहीं छे ज नहीं. खापरी बारणे आवे छे त्यारे तेना करवामां आवता सत्कारनं अहीं वर्णन छे, जेमां पाणीनी धाराथी अभोखु आपवामां आव्युं एम कहेवामां आव्युं छे. ए वर्णन आचमन साथे बंध बेसे नहीं.
एनोंधपात्र छे के साधुसुन्दरगणिकृत 'उक्तिरत्नाकर' अभोखउ ( तेमज अभोखणु) शब्दनो अर्थ 'अभ्युक्षणम्' आपे छे, जेनो अर्थ थाय छे 'सिंचन, छंटकाव'. वणी अन्य कृतिओमा अभोखण शब्द वपरायेलो मळे छे त्यां बधे सत्कारनो प्रसंगसंदर्भ छे. सत्कारमा
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