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११. प्राकृत रंप 'छोलवू' हालकविनी 'गाथासप्तशती'नी ११९मी गाथानो एवो अर्थ छे के आजे केटलाय दिवसथी, रूपयौवनथी छकेली शिकारीनी वह, धनुष्यना छोल शेरीओमां वीखेरीने पोताना सौभाग्यनी प्रसिद्धि करी रही छे. तात्पर्य एवं छे के ए रूपाळी साथेना भोग-विलासथी निर्बळ बनेलो तेनो पति हवे भारे धनुष्य वापरी शकतो न होवाथी ते तेनी काठी छोलीने हलकी कर्या करे छे.
एवा ज भावार्थवाळी १२०मी गाथामां का छे के 'जुओ तो, आ शिकारीना वह घरना आंगणामां वंटोळियाने जोरे धनुष्यनो छोल वरसावी रही छे - जाणे के पोताना सौभाग्यनो ध्वज फरफरावती न होय ?'
आ बंने गाथाओ 'वज्जालग्ग' मां संगृहीत करेली छे (व्याध-व्रज्या, २.४, क्रमांक २०६२०७). वेबरना संपादनमां आ गाथाओमां 'छोल' वाचक शब्दनो रुंप एवो पाठ स्वीकार्यो
'वजालग्ग'मा एक स्थाने धणुरूप अने बीजे स्थाने धणुरओरंप एवो पाठ छे. धणुरओरुपनो टीकाकार रत्नदेवे धनुरजस्त्वक् एवो अर्थ कर्यो छे. एने स्थाने 'गाथाशप्तशती' मां धणुहरोरंप एबुं पाठांतर मळे छे.
_ 'पाइअलच्छीनाममाला' मां ओरंपिअ 'छोलेलु' एवा अर्थमां आपेलो छे. उपरांत ओरत्त 'फाडेलु एवा अर्थमां, तथा 'देशीनाममाला' मां ओपिअ अने ओरंपिअ (१, १७१) 'आक्रान्त, नष्ट' एवा अर्थमां अने ओरत्तअ 'विदारित' एवा अर्थमा आप्यो छे.
आ सामग्री परथी आ प्रकारे निष्कषो काढी शकाय छ :
साचो पाठ रुंप नहीं, पण रंप छे. उद्रपित परथी उदंपिअ अने संस्कृत उद् के अपमांथी निष्पन्न ओ साथे रंप जोडाईने ओरंपिअ निष्पन्न थया छे.
ओरत्तअ ए अवरप्त उपरथी सधायुं छे. आ बंने शब्दोनी व्युत्पत्ति में १९६१ मां एक निबंधमां दर्शावी हती. पछीथी ए Studies in Desya Prakrit (१९८८)मां संगृहीत. पृ.९९-१०० धणुअरोरंपिअने बदले धणुहरोरंपिअ पाठ साचो छ, केम के अपभ्रंशमां धणुहर शब्द 'धनुष्य'ना अर्थमां वारंवार वपरायेलो छे.
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