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________________ प्रतिमानी आगळना भागमां के अन्यत्र योग्य स्थाने, बाजोठ उपर घउं के साथे बीजा अनाजना दाणा वडे, स्वस्तिक वगेरेनी आकृति करवामां आवे छे अने उपर पुष्पो मूकवामां आवे छे. विधिना एक भागरूपे आ होय छे. आ प्रकारनी आकृति बनाववाने 'घउंली पूरवी' कहे छे, अने ते प्रसंगे घउलीनां गीत पण गवाय छे. वीरविजयनी रचेली घणी 'घउंलीओ' (एटले के घउंलीनां गीतो) नोंधाई छ, अने घउंलीसंग्रह पण प्रकाशित थयेल छे. 'पुरातनप्रबंधसंग्रह'मां (चौद मी शताब्दी आसपास) गृहलीनो प्रयोग थयो छ : 'यत्र च गृहली पुष्प-प्रकरश्चोपरि त्वया तत्र खनितव्यम्' (पृ. ९८). 'जे स्थळे घउंली अने तेना पर पुष्पनो ढग होय त्यां तारे खोदवू'. 'प्रबंधकोश'मां (ई.स. १३४९) पण ते वपरायो छ : 'गूहली कृष्णा न मंगलाय.' (पृ. १२४). 'काळी घउंली मंगळकारक नथी होती.' भोगीलाल सांडेसरा अने ठाकरे जैन प्रबंधोमांथी तारवेला महत्त्वना शब्दप्रयोगोनी 'लेक्सिकोग्रेफिकल स्टडिझ इन जैन संस्कृत' एवे नामे जे सविवरण शब्दसूचि प्रकाशित करी छे (१९६२) तेमां उपर्युक्त बंने संदर्भो आप्या छे, सामान्य रीते देरासरमा मुखमंडपमां भोय पर राता के पीळा पत्थरथी कराती, घउंली ने अनुरूप स्वस्तिकनी भातने बदले काळा पत्थरथी कराती भात अमंगळकारक मनाती होवानो प्रभाशंकर सोमपुरानो खुलासो टांक्यो छे अने चालू प्रथानो पण निर्देश कर्यो छे (पृ. ५८-५९, १२९). ___आम्रदेवसूरिकृत ‘आख्यानक-मणि-कोश-वृत्ति'मां (इ.स. ११३३)मां गोहली एबुं रूप मळे छ : 'पभाय-समयम्मि गोहली-पुव्वं, कुसुमेहि सीह-वारं पइदियहं पूयए सो उ.', (पृ. ११६, गा. ६९) 'ते दररोज सवारने समये (राजप्रासादना) सिंहद्वारने त्यां आगळ घउंली रचीने पुष्पो सहित पूजवा लाग्यो'. ___ अंते आपेली देश्य शब्दोनी सूचिमां गोहलीनो अर्थ गोधूमाली ए प्रमाणे आप्यो छे. सं.गोधूम, प्रा.गोहूम, ते उपरथी गोहूं, घोउं, घउं ए प्रमाणे विकास थयेल छे. उत्तरांशने आली साथे कदाच सांकळी शकाय, पण तो आ ह्स्व बन्यो छे, तेनो खुलासो आपवानो रहे. गुज. घउंलो 'घउंना रंगनो वाछडो', घडेली 'तेवी वाछडी', घउंलो 'घउंनो खीचडो' वगेरे पण घउं परथी साधित थयेला छे.. ___ आम घउंली पूरवानी प्रथा बारमी शताब्दी जेटली तो जूनी छे ज.जैन परंपरा सिवाय अन्य परंपरामां ए प्रथा छे के केम ते तपासवू रहे छे.गुजराती कोशोमां आ अर्थमां शब्द नोंधायो नथी. [29] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520503
Book TitleAnusandhan 1994 00 SrNo 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1994
Total Pages54
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size3 MB
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