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५२ऊडिय चडि वायस खज्यूरि, लवि महुरई सरि जोइवि दूरि आवंतउ कहि धमसुरि-नाहु, पहुचि जिम्व तसु वंदण जाहु ॥ ५३
(१३) अड् ढाइय - वरिसे हिं, जसु लोए समागमु । अहिय - मासु संपत्तु ५४, मास हिय - मणोरमु ॥ ५४ तहिं वंदउं जससुरि सुहकारु, तवसिरि - कन्नवयंस पयारु । धमसुरि – बाहर – नावउं संतह, हरउ दुरिउ सुह करउ पढंतह ॥ ५५ विन्नत्तिय निसुणे हि, सासण-दिवि सायरु । नंदउ धमसुरि लोए, जा चंद - दिवायरु ।। ५६
॥बारह – नावउं समत्तं ॥
५३. ऊविय ५४. संपत्तो
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