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________________ सिद्धहेम शब्दानुशासन प्राकृत अध्यायनां उदाहरणोना मूळ स्रोत - हरिवल्लभ भायाणी प्राकृत अध्यायमां निरूपित प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिकापैशाची अने अपभ्रंश भाषाना व्याकरणना नियमोने उदाहृत करवा हेमचंद्राचार्ये प्रचलित साहित्यमाथी उदाहरणो प्रस्तुत करेलां छे. ए स्वयं पसंद करेलां होय, अथवा तो पूर्ववर्ती प्राकृत व्याकरणोमाथी अपनावेलां होय (वररुचि, चंड, नमिसाधुन अने कदाच लुप्त थयेल स्वयंभूव्याकरण एटलां तो आपणे आधारभूत होवानो संभव चींधी शकीए) । एमां आपणने हाल मळतां प्राकृतअपभ्रंश साहित्यमांथी ए उदाहरणोनां यथाशक्य मूळ शोधवानो प्रयास अनेक कारणे मुश्केल बने छे. एक तो केटलीक मूळ कृतिओ लुप्त थई गई होय; बीजं, प्राकृत साहित्य अतिशय विशाळ होवाथी पण ए काम विकट बने; त्रीजं, ज्यां उदाहरण मात्र एक-वे शब्दनुं होय त्यां तेने बीजेथी ओळखवान असंभवप्राय गणाय. तेम छतां एवो प्रयास घणो मूल्यवान ए रोते गणाय के ते द्वारा हेमचंद्राचार्यना समय सुधीमा जे प्राकृत-अपभ्रंश साहित्य शिष्टमान्य लेखातुं हतुं तेनुं चित्र आपणने प्राप्त थाय. आ दिशामां आ पहेलां थयेला केटलाक प्रयासोनी ऊडती नोंध लईए तो वेबरे १८८१ मां पोतानी हालना सप्तशतक (= गाथा-सप्तशती)नी आवृत्ति उपरनी नोंधोमां 'सिद्धहेम मा उदधृत थयेल केटलाक शब्दो - खंडो ओळखाव्या छे. पिशेले पोताना प्राकृत व्याकरणमा सि. हे. ना घणाखरा शब्दो नोंध्या छे, अने केटलेक स्थळे मूळ स्रोत दर्शाव्या छे. नीती दोल्चीए तेमना फ्रेन्च भाषामां लखेला The Prakrita Grammarians, १९३८ (प्रभाकर झा कृत अंग्रेजी अनुवाद, १९७२ )मा वररुचिथी लईने पौर्वात्य संप्रदायना प्राकृत व्याकरणकारोनी साथे सिद्धहेम' ना प्राकृत विभागनी तुलना करीने समान सूत्रो अने उदाहरणो विगते दर्शाव्यां छे. (आमाथी रुदटकृत "काव्यालंकार" उपरना नमिसाधुना टिप्पणमा आपेल प्राकृत व्याकरणनी रूपरेखा अने सि. हे. ना प्राकृत विभाग वच्चेनी समानता दर्शावतो अंश, आपेल परिशिष्टमां उद्धृत कर्यो छे.) ए पछी सि. हे. ना अपभ्रंश विभागना अनवादमां में केटलांक अपभ्रंश उदाहरणोना मूळ स्रोत, के समान्तर भावार्थवाळां उद्धरणो संस्कृत-प्राकृत-अपभ्रंश [२५] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520502
Book TitleAnusandhan 1993 00 SrNo 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages90
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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