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________________ गर्जर-रासावली मां अन्य त्रणेक स्थान आ शब्द वपरायेलो छ : तुम्हि मंडावउ नवउ अखाडउ, नवनव भंगि पुत्र रमाडउ. ४.१ राधावेधु करीउ दिखाडइ, तिसउ न कोई तीण अखाडइ. ४. ८ इम परीक्षा हुई अखाडइ, तीछे अरजुनु चडीउ पवाउइ ४.२० (शालिभदसूरिकृत पंचपांडवचरित्ररास, र. ई. १३५४) अहीं प्रसंग कौरव-पांडवोनी शस्त्रविद्यानी परीधनानो छे. तेथी अखाडउ एटले 'शौर्यस्पर्धा एवो अर्थ बधे स्पष्ट छे. शौर्यस्पर्धानं स्थान एवो अर्थ पण लई शकाय. वधारे रसप्रद छे ते तो अखाडउ ना वीजा बे प्रयोगो. षडावश्यक -बालावबोध मां चैत्यवर्णनना प्रसंगे द्वारे द्वारे अखाडामंडप साथे प्रेक्षामंडप होवानो उल्लेख आवे छे. संपादक प्रवोध पंडिते अखाडामंडप नो अर्थ 'pavilion' आप्यो छे ते तो देखीती रीते ज भूलभरेलो छे. पण अहीं अखाडामंडप एटले 'शौर्यस्पर्धान स्थान एवो अर्थ होवा करता रमतनुं स्थान, क्रीडाभमि एवो होवा वधारे संभव छे. चैत्यमां शौर्यस्पर्धा होई शके ? नरसिंह महेताना एक पदमांनो अखाडो, शब्दनो प्रयोग आ संदर्भमां उपयोगी नीवडे तेवो छ : वृंदावनमां रच्यो अखाडो, नाचे गोपी गोवाल. ५४.१ ___ (नरसैं महेतानां पद, के. का. शास्त्री) अखाडों शब्द अहीं शौर्यस्पर्धा ना अर्थमां नथी ते स्पष्ट छे.गोपी-गोपाल नृत्य करे छे, एटले क्रीडाभूमि एवो अर्थ ज लेवानो रहे. षडावश्यक - बालावबोध मां पण नृत्यादि क्रीडाओनं स्थान एवो अर्थ बंध वेसे. आ अखाडो शब्दनो जरा जुदो पडतो प्रयोग गणाय.' ६. अछिवउं, अछीउं अछई, छई मध्यकालीन साहित्यमा व्यापकपणे मळतां क्रियारूपो छे, पण उक्तिरत्नाकर', अछिवउं एवं विध्यर्थकृदंतनुं अने अछीउ ए कर्मणिर्नु रूप नोंधे छे ए विरलपणे प्राप्त रूपो छे. अछिवउं नो पर्याय स्थातव्यम् होवं, रहेवं अपायो छे अने 'अछीउं नो पर्याय स्थीयमानम् (थएँ, रहेवावं, रखावू) आपवामां आव्यो छे. ७. अछूतउ अछूत शब्द अस्पृश्य, हलकी जातिनो माणसए अर्थमां खूब जाणीतो छ. उक्तिरत्नाकर मां अछूतउ शब्द जुदा अर्थमां होय एम समजाय छे.एमां पर्याय अच्छुप्त अपायेलो छे, जेनो अर्थ अस्पृष्ट थाय. पण मइलउ, छोति, अछुतउ एम शब्दक्रम छे ने उक्तिरत्नाकर मां शब्द कया जूथमा मकायो छे तेमाथी केटलीक वार एना अर्थनी चावी मळे छे. अहीं मइलउ नो विरुद्धार्थी शब्द अछूतउ समजीए एनो अर्थ स्पर्शदोषना अभाववाळो, निर्मल एम करवो जोईए. छोति नो अर्थ स्पर्शदोष थाय ज छे.५ [११] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520502
Book TitleAnusandhan 1993 00 SrNo 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages90
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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