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जैन धर्म, दर्शन, साहित्य एवं कला के क्षेत्रों में स्थापित किया है उससे सभी विद्यानुरागी जन सुविदित हैं। पुनीत कर्तव्य पालन - भावना से यह सम्भव हो सका है। अभिनन्दन करता हूँ ।
JAIN JOURNAL
'जैन जर्नल' ने जो कीर्तिमान आपकी समर्पित निष्ठा एवं इस अवसर पर मैं आपका
- डा० महावीर सरण जैन प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, हिन्दी एवं भाषा विज्ञान विभाग रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर
'जैन जर्नल' ने जैन साहित्य और संस्कृति को व्यापक होने में अन्तर्देशीय के साथ अन्तर्राष्ट्रीय होने में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। जैन साहित्य के दर्शन के ज्ञानविज्ञान के कई नये पक्षों को उजागर करने वाले लेख इसमें प्रकाशित हुए हैं । वस्तुतः जैन विद्या की शोध पत्रिकाओं का प्रतिनिधित्व किया है - आपके पत्र ने। इसके विशेषांक किसी शोध-खोजपूर्ण ग्रन्थ जैसी सामग्री देने में सक्षम रहे हैं । साज-सज्जा भले उसकी एकसी रही हो किन्तु वह सदैव मनोरम और आकर्षक रही है । यह पत्र वहुमुखी विकास के पथ पर अग्रसर हो, यही भावना है ।
Jain Education International
जर्नल ने अपनी यह लम्बी यात्रा आपकी सुयोग्य सम्पादकत्व में पूरी की यह उसका सौभाग्य है और यह आपके लिए यादगार है कि जिस पत्र को आपने सम्हाला जन्म दिया, उसके युवा होने तक आप उसके साथ रहे। कितने को यह सौभाग्य प्राप्त होता है - अपनी युवा और समर्थ सन्तान के साथ इज्जतपूर्वक रहने का । बधाई ।
- डा० प्रेम सुमन जैन जैन तथा प्राकृत विद्या के सहयोगी अध्यापक उदयपुर विश्वविद्यालय, उदयपुर
I have been reading 'Jain Journal' for last 20 years and have no hesitation in admitting that the Journal through its valuable articles has rendered great service to the cause of Jaina studies. The publication of the Journal has been regular which is a rare point nowadays and for which the Editor Shri Ganesh Lalwani deserves all our applause. The articles in the Journal are wideranging
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