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________________ भगवान महावीर जन्मोत्सव परिशिष्ठांक राष्ट्रमित्र भगवान महावीर ( श्री गणेश लालवानी ) तथागत बुद्ध की भांति भग वान महावीर भी ऐतिहासिक पुरुष थे । ५९९ ई० पू० उन्हेंने क्षत्रिय कण्डपुर में जन्म ग्रहण किया । उनके पिता का नाम था सिद्धार्थ । वे ज्ञात वंशीय क्षत्रिय थे। उनकी माता का नाम था त्रिशला । वे वैशाली गणतंत्र के अधिनायक चेष्टका की बहन थीं । महावीर का पितृदत्त नाम था वर्धमान । ज्ञात वंशीय होने के कारण उन्हें ज्ञात पुत्र या नाय-पुत्र के नाम से भी संबंधित किया गया है। पार्श्वनाथ के पत्र वर्ती तीर्थंकर थे भगवान अरिष्ट नमि । उनके पूर्व और २९ तीर्थंकर हुए थे । प्रथम या आदि तीर्थंकर थे भगवान ऋषभदेव । ऋषभदेव ने उस प्रागतिहासिक युग में जन्म लिया था जब सभ्यता का प्रथम विकास होना शुरू हुआ था। ऋषभ देव के नाम का उल्लेख वेदों तथा पुराणों में भी मिलता है। वहां उन्हें पातरशन मनियों के प्रमुख के रूप में अभिहित किया गया उनका लांछन था वषभ । सिन्धु सभ्यता का वृषभ सम्भवत उनकी स्मृति को ही चरितार्थ करता है । अत. महावीर एक अति प्राचीन धर्म के धारक और वाहकं थे । महाव ने २० वर्ष की उम में प्रवृज्या गृहण की थी। उसके उप रान्त सुदीर्घ ९२ तक वे देश के विभिन्न प्रान्तों में घूमते रहे । धीन होते हैं, उस रात्रि में संयमी परुष जगता है। जिस समय अहानी नगते हैं, आरम टा ऋषियों के लिए वह समय रात्रि का होता है ोगिराज श्री कृष्ण तथा भगवान श्री महावीर, दोनों ही महापुरुषों की अनुभूतियों में अन्तर नहीं हो मकता 1 अभिव्यक्ति के कार इसके अतिरिक्त आर्य परिधि की सीमा का अतिक्रमण कर अनार्य और आदिवासी अध्युसित अंचल में उन्हेंने प्रब्जन किया था। इस प्रजजन के पीछे उनका उद्देश्य यह था कि वे देश की धार्मिक सामाजिक तथा राजनैतिक परिस्थितियाँ से परिचित हो तथा स्वयम को उस महान दायित्व निर्वाह के लिए प्रस्तुत करें। उस समय क्रियावाद, अक्रियावाद अज्ञानवाद, विनयवाद आदि बहुत से मत प्रचलित थे । जिनके नेता थे आजित केश कम्बली, प्रध कारवायन संजय बेलटिठपुत्त, पूरण काश्यप मंखलीपुत्त गोशालक आदि । महावीर ने इन सब मत को आत्मसात किया और जब स्वयम को प्रस्तुत कर लिया तो धर्म-प्रचार में प्रवृत्त हुए । सुदीर्घ २० वर्षो तक उन्होंने धर्म प्रचार किया। उन्हें न कोई नया धर्म या मत प्रचारित नहीं किया, बल्कि Jain Education International परस्परोप प्रस्तुत उसी प्राचीन धूमण धर्म को नए परिवंश में नई शैली में किया जो धूमण धर्म साम्य भावना पर प्रतिष्ठित था । यह साम्य केवल मात्र मनुष्य में ही नहीं यह माम्ब विश्व के हर एक जीव के साथ भी श्रेष्ठता को स्वीकार नहीं करता था । धमण धर्म नाति और वर्ष की यथा गुरु पद का अधिकारी पह व्यक्ति हो सकता है जो कोई भी वर्ण का क्यों न हो पर सदाचारी और शौलसम्पन्न हो । भगवान महावीर के प्रचार का मुल्यांकन आज भी कहीं ह इसका कारण यह है कि उनक अनुयायी उन्हें देवत्व के आसन पर बैठाकर पूजने लग गए और मण धर्म के अनुयायियों उनकी की। इतनी दूर सम्पूर्ण उपेक्षा तक की कि उनका नाम तक बाह मण साहित्य में नहीं मिलता लेकिन उनका प्रचार इतन्य सुदूर प्रसारित हुआ और उसका प्रभाव इतना विस्तृत हुआ कि महाभारत कार को उसे पूर्व पक्ष रूप में रखना पड़ा । For Private & Personal Use Only -000 Rashtramitra, a Weekly in Hindi published from Calcutta, April 10, 1976. The article is entitled 'Bhagavan Mahavira. www.jainelibrary.org
SR No.520050
Book TitleJain Journal 1978 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Bhawan Publication
PublisherJain Bhawan Publication
Publication Year1978
Total Pages53
LanguageEnglish
ClassificationMagazine, India_Jain Journal, & India
File Size3 MB
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