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________________ को रखा गया है। बंगाल के फोर्ट विलियम वायालय में ताम्बरम पूजक समार्थ की ओर से भूि बहादुराचार द्वारा रा परेशनाथ सिंह के विरुद्ध वायर की नवी अपील में मानवीय न्याया पीने २५ जून १८९२ को निर्णय देते हुए कहा कि "हमारी राय है कि साक्षियों से यह बास प्रमाणित हो गयी है किं जंगला पहाड़ को पवित्र मानते हैं।" free गांव पालगंज के राजा किया ठाकुर को सम्मे शिव के मंदिरों का सेवाव नियक्त किया गया था, जिसने अवसर पाकर डिटिश शासन के प्रारम्भिक दिनों में इस शिखर की हारी भूमि का दाखिल सारि अपने ही नाम में करा लिया। बाब को यह बात ज्ञात होने पर न वेताम्बर मूर्तिपूर्वक मंच मे ग्रहHere at wife पीढ़ी न बी कल्याणजी के सहयोग से पारम नाव पहाड़ को सन् १९१८ में पासगंज के राजा से २ || लाल रुपये में खरीद लिया। सबसे शिवर और उसके मंदिरों का सारा प्रबंध अहमदाबाद की इस प्र संस्था के ही अन्तर्गत है। मार्च १६१८ को तत्कालीन बंगाल-बिहार सरकार और जन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक मंत्र के प्रतिनिधि प्रानन्दजी कल्याणजी के मध्य एक रजिस्टर्ड डोड सम्पन्न हु इसमें भी शिखर को पवित्रता की पुष्टि की गयी है। 'डी' मे कहा गया है "अनन्तकाल से शिखर पर अधिकार होने और मंगल सम्राटों द्वारा दी गयी सनदों से तथा देश के इस भाग पर पंजों का शासन होने से हीं पहाड़ के मासिक ने पहाड़ का उपयोग[सो धर्म-निरपेक्ष हेतु के लिये किये जाने का सफल विरोध किया है और सरकार शिखर से संबंधित धार्मिक भावनाओं को अत्यन्त सहानुभूतिपूर्वक क (शेष पृष्ठ २ पर) Baisakh, 1377 Ananda Bazar Patrika, a leading Daily in Bengali, 5th (April 19, 1970). The column is devoted in connection with the Birth Anniversary of Bhagavan Mahavira water পরিক্ষা, বিবার ও কৈ 1000 মহাবীর স্মরণে जीव যেন नामा क#ে २३ मচোখে ে PACE RICO RIE mian किड् गायक क्रिस पटक যেমন এর বিপাगड 5 नई এর भ कृषिद्ध अभय উপ করা बजे । ঔখन বোঝা যার এस च विद्र ফু शनि - ক্ষতি হলে সময় মধा व क जनकथा। 'शी वय এकটनाम (टो চপ। ওরোদপীতে পাডি হয়। 1 ) CWIRK ' ( মবীরে- েেছ। शेषन एवं निव S সেই সে टकान ७०', এবং यस जय महारा श करन भनহল4 পথেই कर इ.। তত্ত্বের চেয়ে বড় ཥ་ । निःस সম্মানে নীরবে নত হতে হয়। মহাযা এবং অন बीटन उद পারन ট মরষ ছেন বং को काম:না मना वजन 6 - कोन *** aku. নিরन সের +3 म - क न भक निका তति শিका অमाननि নम्र, একটি ইতद भारत। .ণের রসसृর रा बैंकর - टा व क বিত থাকা এর ain বার नवाब प्रशासन २० . অমিসকুমার বন্দ্যোপাধ্যারা Jain Education International जैन तीर्थकरों - आचार्यो गन्धवों की निर्वाण भूमि सम्मेद शिखर ( श्री जगतसिंह बोरा ) सम्मेद शिखर पारसनाथ पहाड़ ( पारसनाथ हिल्स) का ही धार्मिक पोर म्यात्मिक नाम है। जंग २३ में सीकर भी पार्थ स्वामी के नाम पर वह नामकरण हुआ है। सम्मेद शिखर २४ जन सीयंकरों में से २० का निर्माण स्थल है। शेष ४ सीपंकरों में बादि तीर्थकर श्री ऋषभदेव की निर्वाणभूमि और सीकर महावीर स्वामी को निर्वाण भूमि बाबाबुरी है। वासुपूज्य और मोनाव -मी का निर्वाण क्रमशः कम्पाबुरी और गिरनार में हु सम्मेद शिखर को सहस्त्रों जंनाचायों, मुनिवरों, संस्य गंधों, साधु-साध्वियों को निर्वाण भूमि होने का गौरव भी प्राप्त है। यह सारा शिखर जैन धर्मावलम्बियों का महातीर्थ है, जो अनन्तकाल से वृजा-रामना का प्रत्यक्रम स्थल रहा है। शिखर का कण-कण उनके मियं परम पूज्य है। भक्तगण शिवर की तरह ही है। शिर के मानों को गोदुग्ध प्रभिषित किया जाता है। जन शास्त्रों और धर्मग्रंथों में सिर की महिमा मन शिवर दर २४ तीर्थकरों के २४ मंदिर है जिनकी रियो में मकराने को वेदियों पर तीर्थक के चरण-ह्न विराजित है। इन २४ मंदिरोंमें राय बडीबास जोहर द्वारा निर्मित मंदिर तथा जल शुक्रबार १३ मई १९६३ मंदिर विशदश्वेताम्बर मंदिर माने जाते हैं। दिसम्बर इन मंदिरों में दर्शनार्थ नहीं जाते। शेष २२ मंदिरों को दिगम्बर सम्प्रदाय दिगंबर परम्परा के मंदिर मानता है। सम्मेद शिखर अर्थात् पारसनाव पहाड़ जिले सरकारी कहाजातों में मोजा पारसनाथ भी रहा गया है-बिहार राज्यके हमारी जिले में बाना नं. ६५ के गंत १६,००० एकड़ भूमि में पिस्तारित है। शिखर की मार्मिक पवित्रता की पुष्टि माटों की समो में, ब्रिटिश सरकार और वर्तमान बिहार राज्य सरकार के शिखर सम्बन्धी समझ में की गयी है। शिखर को धार्मिक पवित्रता की ज न्यायालय के कमरों में भी हुई है। ईस्वी सन् १५६३ ए. डी. मैं तत्कालीन मुगल सम्राट करने जंनाचार्य हीर विजय सूरी के मार्फत जंन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक सम्प्रदाय को जो सनद दी उसमें शिवर की धार्मिक पवित्रता को स्पष्ट शब्दो में स्वीकार किया गया है। सनद मे यह भी लिखा गया है कि सारी जांच-पड़ताल के बाद यह बात प्रमाणित हुई है कि पूजा-अराधनः का स्थल पारसनाथ पहाड न श्वेताम्बर धर्म के अनुयायियो का । इसके पश्चात सन १७६० ई. मैं सम्राट महमद शाह द्वारा मंग वेताम्बर मतिपूजक सम्प्रदाय के प्रतिनिधि जगत सेठ महताब राय सन्मार्ग 이 की टीमें भी Sanmarg, a Calcutta Daily in Hindi, May 13, 1965. The article describes the holy Sammet Sikhar. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520050
Book TitleJain Journal 1978 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Bhawan Publication
PublisherJain Bhawan Publication
Publication Year1978
Total Pages53
LanguageEnglish
ClassificationMagazine, India_Jain Journal, & India
File Size3 MB
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