SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1 R दीर्घकालार्थे कदा विकर्हिचित् दोषानक्मुखाराचे अंगे आतरह ६ तिर्यगधेतिरः सा दि' निष्फलेटयामुधा' मृषामिष्पापले समयानिषाके हिरुक् ७० शंसुदेवलवत्स टु किमु ताती निर्भर जाकरापर्थमेव ईवखपरे मिथ ७२ वानिज्ञांतेि दृल्पे किंर्विन्म भागी बकिंव न" प्रातता हो किमुत विक्के किंव७२ इतिहस्पात्संप्रदाये देतोयशद्युतस्ततः संबोधनें गनोप्पाटूपाट् हेहेहे हो अरेयिरे ७५ टू वोष स्वधावति रहस्यु पश्चम ध्मेंत रंतरे या तरेतरा' ७४ आदि प्रकाशा" नानो नदि" वेदप्रामासम वारणे । कामदर्शन ७५ कामानुमतोकामं स्पादोंच परमं मते कचिदिष्ट परिजन हवयंनंच निश्चये ७६ बर्दिबास्पां दतीतेनिश्वष्यति नरिपेमरुः चेलि सुनिने ७७ ननुचम पहिरोको पट्रांतरे देहादिज्ञान देहवरेश्वकि शेषोका तुलतो नमः २७८ इत्याचार्य श्रीम वंद्र रिविरचिताया मनिधान चिंतान ऐगे नाममा लाखां सामान्य कांडः पृष्टः भाये २८०० ॥ ॥संबल भिती वो दीप दारको प्रवार, दिने बिपीन श्रीबावर मध्ये वर्मा) प्राकृतः श्रीभूतव तिनजाशोदशत् ॥ श्री एक ॥ श्री ॥ कल्याणमन्काविरंचालगपठनार्थ Last page of Abhidhana cintamani Original manuscript S 1800 Copied at Baluchar Murshidabad, West Bengal VS 1873 Jam Bhawan collections
SR No.520010
Book TitleJain Journal 1968 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Bhawan Publication
PublisherJain Bhawan Publication
Publication Year1968
Total Pages175
LanguageEnglish
ClassificationMagazine, India_Jain Journal, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy