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________________ - [१०२] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ-વિશેષાંક दरबार में बुलाए । राजा भी आचार्यश्री का स्वागत करने कुछ दूर सामने गया । सूरिजीने राजाको आशीर्वाद दीया। साखो राजाने आचार्यश्री के कलाचातुर्य से प्रसन्न हो कर बहुमान पूर्वक अपने यहां रक्खे । कालकाचार्य वहां रहेते हुए, ज्योतिष निमित्तादि विद्याओं से राजा को चमत्कृत करते हैं । इस प्रकार कितनेक दिन व्यतीत हुए । एक दिन साही राजा के पास एक राजदूतने आकर राजा के समक्ष एक कटोरा, एक छुरी और एक लेखपत्र रक्खा । राजा पत्र पढकर स्तब्ध हो गया । उसका चहरा उदास हो गया। राजाकी ऐसी स्थिति देख वहां बैठे हुए कालकाचार्य ने कहा “ राजन् ! आपके स्वामी की भेट आई है, इसे देख हर्ष होना चाहिए, किन्तु इसके विपरीत उदासीन क्यों दिखाई देते हैं ?" राजा ने कहा-" हमारे वृद्ध स्वामीने क्रोधित होकर हुक्म लिखा है कि-इस छुरी से तुम्हारा मस्तक काट कर इस कटोरे में रख शीघ्र भेजो। यदि तुमने ऐसा न किया तो तुम्हारे समस्त कुटुम्ब का नाश होगा । इस प्रकार मुझे ही नहीं, अपितु मेरे समान अन्य साखी राजाओं को भी लिखा गया है।" कालकाचार्य को अपने कार्यसिद्धि का यह सुयोग मिला। इन्होंने राजा को कहाः-"तुम समस्त साखी राजा एकत्रित होकर मेरे साथ चलो । अपन 'हिंदुक' देश में जाकर उज्जैनी के गर्दभिल्ल राजाको उखेडकर उस राज्य का विभाग कर तुमको सोंप दूंगा। सूरिजी के वचनों पर विश्वास रख राजाने अन्य ९५ राजाओंको निमंत्रित कर उनके साथ प्रयाण किया । सिंधु पारकर वे सौराष्ट्र में आए । यहां आते आते वर्षाकाल समीप आगया अतएव कालकाचार्य की आज्ञा से सबने अपना पडाव यहीं डाला। चातुर्मास समाप्त होते ही सबने आगे प्रस्थान किया। यहां से लाट देशमें प्रवेश किया और वहाँ के दो राजा बलमित्र तथा भानुमित्र जो कि आचार्यश्री के भानजे होते थे उनको भी साथ लिए । दूसरी ओर गर्दभिल्ल राजा को भी अपने उपर आनेवाली आपत्ति की खबर होते ही उसने अपना सैन्य तैयार कर सामने आकार पडाव डाल दिया। दोनों सेनाओं के बीच युद्ध आरम्भ हुआ, इसमें साखी राजाओं के सैन्यने अपनी शक्ति का पूरा जोहर दिखाया। गर्दभिल्ल का सैन्य जान लेकर भागने लगा। स्वयं गर्दभिल्ल भी नगर के द्वार बंध कर गढ़ में जा छिपा। कालकचार्य के सैन्य ने नगर के चारों ओर घेरा डाल वहीं Jain Educavडाव डाल दीया। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520001
Book TitleJain Journal 1938 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Bhawan Publication
PublisherJain Bhawan Publication
Publication Year1938
Total Pages646
LanguageEnglish
ClassificationMagazine, India_Jain Journal, & India
File Size32 MB
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