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________________ याद घर बुलाने लगी होती है।' मैंने सुना, मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन शराबघर गया। शेखी तो निर्वाण की सूचना समझना कि घर पास आने लगा, जब | मारना उसकी आदत है। शेखी मार रहा था शराबघर के मालिक तुम्हारी गति ऊपर की ओर होने लगे। हिंसा से अहिंसा की ओर के सामने कि मैं हर तरह की शराब स्वाद लेकर पहचान सकता होने लगे। क्रोध से करुणा की ओर होने लगे, बेचैनी से चैन की हूं। और ऐसा ही नहीं है, अगर तुम दस-पांच शराबें भी इकट्ठी ओर होने लगे, पदार्थ से परमात्मा की ओर होने लगे। धन से | एक प्याली में मिला दो तो भी मैं बता सकता हूं कि कौन-कौन ध्यान की ओर होने लगे, तो समझना कि गति ऊपर की तरफ सी शराब मिलाई गई है। शुरू हो गई। तुंबी छूटने लगी मिट्टी से। आज नहीं कल लोकान मालिक ने कहा तो रुको। वह भीतर गया, मिला लाया एक में ठहर जाएगी। वहां पहुंच जाएगी, जिसके आगे और जाना ग्लास में मार्टिनी, ब्रांडी, रम, ह्विस्की–जो भी उसके पास था, नहीं है। सब मिला लाया। मुल्ला पी गया और एक-एक शराब का नाम लाउअ एरण्डफले अग्गीधूमे उसू धणुविमुक्के। उसने ले लिया कि ये-ये चीजें इसमें मिली हैं। चकित हो गया गइ पुव्वपओगेणं एवं सिद्धाण वि गती तु।। वह मालिक भी। उसने कहा, एक बार और। वह भीतर गया ‘परमात्मतत्व अव्याबाध, अतींद्रिय, अनुपम, पुण्य-पापरहित, और एक गिलास में सिर्फ पानी भर लाया। मुल्ला ने पीया, बड़ा पुनरागमन-रहित, नित्य, अचल और निरालंब होता है।' बेचैनी में खड़ा रह गया। कुछ सूझे न। शुद्ध पानी है। स्वाद ही यह जो परमात्मतत्व है, यह जो निर्वाण है, यह जो घर लौट उसे इसका याद नहीं रहा है शुद्ध पानी का। आना है, यह कैसा तत्व है? इसके संबंध में क्या कहा जा | उसने इतना ही कहा, कि यह मैं नहीं जानता यह क्या है! मगर सकता है? | एक बात कह सकता हूं, इसकी बिक्री न होगी। इतना ही—‘परमात्म तत्व अव्याबाध।' इसमें कोई बाधा हमारा जो भी अनुभव है वह कई तरह की शराबों का है। शुद्ध कभी नहीं पड़ती। इसके विपरीत ही कोई नहीं है, जो बाधा डाल | जल का तो हम स्वाद ही भूल गए हैं। बेहोशियों का है; होश का सके। यह सबके पार है। इस तक किसी चीज की पहुंच नहीं तो हम स्वाद ही भूल गए। विक्षिप्तताओं का है, स्वास्थ्य का तो है। सब चीजें इससे पीछे छूट जाती हैं। जिनसे बाधा पड़ सकती हम स्वाद ही भूल गए। गर्हित, व्यर्थ, असार का है; सार का तो है वे बहुत पीछे छूट जाती हैं। अतींद्रिय है। इंद्रियों के पार है, हम स्वाद ही भूल गए। क्योंकि देह के पार है। ___ इसलिए महावीर कहते हैं अनुपम। हमारे अनुभव से किसी से 'अनपम' यह शब्द समझना। अनपम का अर्थ है, जैसा उसका मेल नहीं है। इसलिए तम किसी अपने अनभव के कभी न जाना था; जैसा कभी न देखा था। न कानों सुना, न आधार से उसके संबंध में मत सोचना। खतरा यही हो जाता है। आंखों देखा। जो कभी अनुभव में आया ही न था। बहुत जैसे कि कोई कहे, कोई ज्ञानी, सिद्ध-कहे महासुख; तो अनुभव हुए सुख के, दुख के, सफलता के, विफलता के। बहुत हमको लगता है हमारा ही सुख होगा; करोड़ गुना, अरब गुना अनुभव हुए-रस-विरस, स्वाद-बेस्वाद, सुंदर-असुंदर, बड़ा, लेकिन है तो सुख ही। बस भूल हो गई। लेकिन यह अनुपम है। ऐसा भी नहीं कह सकते यह सुंदर है। उसकी मजबूरी है। वह क्या कहे? किन शब्दों में कहे? क्योंकि तब भ्रांति होगी कि शायद जो हमारे संदर के अनुभव हैं, महासुख कहता है तो भी अड़चन हो जाती है। क्योंकि तुम अपने उन जैसा है। नहीं, यह हमारे किसी अनुभव जैसा नहीं है। यह सुख को ही सोचते हो। तुम अपने सुख में ही गुणनफल करके तो बस अपने जैसा है। अनुपम का अर्थ होता है अपने जैसा। सोच सकते हो लेकिन तुम्हारा सुख सुख ही कहां है? उसको इसकी कोई तुलना नहीं हो सकती। यह अतुलनीय है। तुम करोड़ गुना कर लो तो भी वह सुख नहीं है। 'पुण्य-पापरहित, पुनरागमनरहित, नित्य, अचल और आनंद कहो तो झंझट। क्योंकि तुमने जो आनंद जाना है वे निरालंब...।' | अजीब-अजीब आनंद जाने तुमने। कोई ताश ही खेल रहा है, हमें तो वही शब्द समझ में आते हैं, जो हमारे अनुभव के हैं। कहता है बड़ा आनंद आ रहा है। अब क्या करो? कोई शराब 649 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340162
Book TitleJinsutra Lecture 62 Yad Ghar Bulane Lagi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size37 MB
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