SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रिगुप्ति और मुक्ति और ज्ञानी त्रिगुप्ति के द्वारा... तपश्चर्या करे तो भी कुछ खास लाभ नहीं होता। ज्ञानी व्यक्ति खवेइ ऊसासमित्तेणं... क्षणभर में, श्वासभर में होश से जीए तो बहुत लाभ होता है। एक सांस में उतने कर्मों से मुक्त हो जाता है। इस बात को इंगित करने के लिए कि ज्ञानी से अर्थ शास्त्र को क्या है यह त्रिगुप्ति? जाननेवाला नहीं है, तीसरा सूत्र बिलकुल साफ है। महावीर कहते हैं, 'मन, वचन, काया, इनकी प्रवृत्तियों में महावीर कहते हैं, मोक्षावस्था का शब्दों में वर्णन करना संभव जागरूक होकर जीना त्रिगुप्ति।' नहीं है। इसलिए शास्त्र काम न आएंगे। क्योंकि वहां शब्दों की ये तीन गप्त बातें. ये तीन सीक्रेट. ये तीन कंजियां--मन. प्रवत्ति ही नहीं है। वहां तो केवल चैतन्य का प्रवेश है, शब्दों का वचन, काया। शरीर से जो भी करो, होशपूर्वक करना। मन से कोई प्रवेश नहीं है। वहां तुम तो जा सकते हो लेकिन तुम्हारी जो भी करो, होशपूर्वक करना। वचन से जो भी करो, होशपूर्वक बुद्धि और तर्क नहीं जा सकता। तर्क और बुद्धि को पीछे ही छोड़ करना। ये तीन कुंजियां-इनको जो साध लेता है, वह करोड़ों जाना पड़ता है। जन्मों में भी श्रम करके जो आदमी पाता है, उसे एक सांस में | जैसे कोई आदमी हिमालय पर चढ़ता है, तो जैसे-जैसे ऊंचाई बिना श्रम के पा लेता है। बढ़ने लगती है, बोझ कम करने लगता है। पहले सोचा था सब अज्ञानी आदमी कुछ भी करे तो जो भी करेगा, उसके अज्ञान से सामान ले चलें। फिर जब पहाड़ चढ़ता है तो पता चलता है, ही निकलेगा न। वह तप भी करे तो भी अज्ञान से निकलेगा। इतना सामान तो ले जाना संभव न होगा। तो जो-जो काम का और अज्ञान से जो भी निकलेगा उससे नए कबंधों का जन्म नहीं है, छोड़ दो। फिर और ऊंचे पहाड़ पर चढ़ता है तो पता होता है। वह त्याग भी करे तो भी अज्ञान से ही करेगा। | चलता है, और भी कुछ छोड़ना पड़ेगा। अज्ञानी व्यक्ति का अर्थ है-यह मत सोचना कि जो शास्त्र जब तेनसिंग और हिलेरी गौरीशंकर पर पहुंचे तो बिलकुल सब नहीं जानता–अज्ञानी से अर्थ है, जो जागा हुआ नहीं है; जो सामान छोड़कर पहुंचे। कुछ भी न था। उतनी ऊंचाई पर कुछ ज्ञानपूर्वक नहीं जी रहा है। भी ले जाना संभव नहीं होता। यहीं सविधा हो जाती है चीजों के अर्थ बदल लेने में। जब मोक्ष आखिरी ऊंचाई है चेतना की। वहां तो विचार भी ले जाने महावीर कहते हैं अज्ञानी व्यक्ति तो समझ में आ गई बात, कि संभव नहीं होते, संकल्प-विकल्प भी संभव नहीं होते। इसलिए ज्ञानी होना जरूरी है। पढ़ो शास्त्र, कंठस्थकरो शास्त्र, बन महावीर कहते हैं, उसका तो वर्णन ही नहीं हो सकता। जाओ तोते, तो ज्ञानी हो जाओगे।। इसलिए शास्त्र जो भी कहते हैं, वे सब प्राथमिक सूचनाएं हैं, शब्द कितने ही संग्रहीत हो जाएं, उससे कोई ज्ञानी नहीं होता। अंतिम का कोई दर्शन नहीं है। शास्त्र जो भी कहते हैं, वह सब वह तो यंत्रवत है। पढ़ो, बार-बार पढ़ो, गुनो, याद हो जाते हैं। क, ख, ग, है। वह पहली, प्राथमिक पाठशाला है। शास्त्रों में याद से तुम्हारे जीवन में थोड़े ही कुछ रोशनी आएगी! तुम्हारे जीवन का विश्वविद्यालय नहीं है, प्राथमिक शिक्षा है। शास्त्रों जीवन में कोई दीया प्रगट हो, तुम्हारे जीवन में कोई अनुभव जगे, पर मत रुक जाना।। तुम्हारा अनुभव हो तो ही ज्ञान। उधार ज्ञान ज्ञान नहीं। __ अनुभव ही जीवन का विश्वविद्यालय है। वहां शब्दों की कोई 'मोक्षावस्था का शब्दों में वर्णन करना संभव नहीं, क्योंकि प्रवृत्ति नहीं है। क्योंकि जो व्यक्ति भीतर जाएगा, उसे पहले तो वहां शब्दों की प्रवृत्ति नहीं है। वहां न तर्क का प्रवेश है, न वहां शरीर छोड़ना पड़ता है। क्योंकि शरीर हमारा सबसे बाहरी रूप मानस-व्यापार संभव है। मोक्षावस्था संकल्प-विकल्पातीत है; | है। जैसे कोई आदमी इस भवन में अंदर आएगा तो दरवाजा, साथ ही समस्त मल-कलंक से रहित होने से वहां ओज भी नहीं दरवाजे से लगी हुई चारदीवारी छोड़कर आना पड़ता है। है। रागातीत होने के कारण सातवें नर्क तक की भूमि का ज्ञान तो पहले तो शरीर छूट जाता है। फिर जब और भीतर प्रवेश होने पर भी वहां किसी प्रकार का खेद नहीं है।' करते हैं तो मन की प्रक्रियाएं छूट जाती हैं। जब और भीतर प्रवेश पहले सूत्र में कहते हैं, अज्ञानी व्यक्ति करोड़ों जन्मों तक करते हैं तो हृदय के भाव छूट जाते हैं। जब बिलकुल भीतर 605 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340160
Book TitleJinsutra Lecture 60 Trigupti aur Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size42 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy