________________ HAS Eles जिन सूत्र भागः 2 तुम मोक्ष की कीमत कितनी आंक रहे हो? मोक्ष का मतलब बनता है—निन्यानबे पर भी भाप नहीं बनता, साढ़े निन्यानबे पर हुआः बुहारी लगाकर बैठे + पानी छानकर पीया = मोक्ष? मोक्ष भी भाप नहीं बनता, ठीक सौ डिग्री पर बनता है। ऐसे ही तुम्हारे दो कौड़ी का कर दिया तुमने। प्रयत्न की एक डिग्री है। तुम्हारी चेष्टा की एक डिग्री है, तुम्हारे नहीं, मोक्ष बड़ी घटना है। और उस बड़ी घटना की बड़ी तप की एक डिग्री है। ठीक उस जगह आकर अचानक रोशनी हो तैयारी जरूरी है। जाती है, अंधकार कट जाता है। उसके एक क्षण पहले तक गहन उस तैयारी का पहला कदम तुम उठाना शुरू करो। मैं कहता हूं अंधेरी रात थी। कठिन है। क्योंकि अगर तुम जागकर चलना चाहोगे तो तुम हताश मत होना। लौट मत जाना। यह मत सोचना कि क्या पाओगे, क्षणभर भी नहीं चल पाते। अगर भोजन तुम होश से फायदा! हो सकता है, तुम सनतानबे डिग्री पर थे कि अनठानबे करना चाहोगे तो एकाध कौर कर लिया तो बहुत। फिर भटके, डिग्री पर थे और लौट गए, निराश हो गए। एक कदम फिर भटके। लेकिन बार-बार लौटाते रहो! पकड़-पकड़कर और-एक कदम और। लौटना ही मत। जीवन की एक ही अपने घर आते रहो। फिर जब याद आ जाए कि अरे! कहां बात को याद रखो तो महावीर का सारा सार-संचय तुम्हारे पास चला गया? फिर चबाने लगे बिना होश के, फिर लौटकर आ रहेगा। उठो जागकर, बैठो जागकर, चलो जागकर, बोलो. जाओ। फिर हाथ शिथिल कर लो। फिर से अपने को जगाकर सुनो-जो भी करो-अपने को झकझोर कर। भीतर दीया बैठ जाओ। फिर से भोजन शुरू कर दो।। जागने का जगा रहे। क कदम चलोगे, होश रहेगा, दसरे कदम तम मझे यहां सन रहे हो, तम इस तरह सन सकते हो कि बैठे पर फिर बेहोशी आ गई. फिर कोई खयाल उतर आया. फिर हैं, हजार बातें चल रही हैं खोपड़ी में, यह मेरी बात भी सुनाई पड़ किसी खयाल में खो गए। जब याद आ जाए, फिर अपने को रही है उन्हीं हजार बातों के बीच में। कहीं-कहीं कुछ-कुछ शब्द सम्हाल लो। शुरू-शुरू में तो ऐसा ही होगा। पकड़ोगे, | भीतर प्रवेश कर जाते हैं। वे हजार बातों में लिपटकर उनका अर्थ खोओगे; पकड़ोगे, खोओगे। हाथ लगेगा धागा, छूटेगा; भी बदल जाता है। कुछ का कुछ सुनाई पड़ जाता है। कहा कुछ, छूटेगा हजार बार। सुन कुछ लेते हो। अर्थ कुछ था, अर्थ कुछ निकाल लेते हो। तुम फिकिर मत करो। हजार बार छूटे, हजार बार पकड़ो। ऐसे सोए-सोए सुनकर तुम जो ले जाते हो, वह तुम्हारा ही इससे हताश भी मत होना, क्योंकि यह बात ही ऐसी है कि होगा। उसका मझसे कुछ लेना-देना नहीं है। सधते-सधते सधती है। यह बात इतनी मूल्यवान है कि यह एक जागकर सुनो। जागकर सुनने का अर्थ है, सुनते वक्त तुम दफा में सध जाती तो इसका कोई मूल्य ही न था। ये कोई मौसमी कान ही कान हो जाओ। तुम्हारा पूरा शरीर कान की तरह काम फूल नहीं हैं कि डाल दिए बीज और दो-चार सप्ताह में फूल आ | करे तो जागकर सुना। भोजन करते वक्त तुम स्वाद ही स्वाद हो गए। ये तो देवदार और चिनार के बड़े वृक्ष हैं, जो बहुत समय | जाओ। तुम्हारा पूरा शरीर बस भोजन करे। चलते वक्त तुम पैर लेते हैं। बड़े होते हैं। आकाश को छूने जाते हैं। ही पैर हो जाओ। बस तुम चलो। सोचते वक्त तुम मन ही मन मोक्ष से बड़ी और कोई घटना इस संसार में नहीं है, न इस | हो जाओ; फिर सिर्फ सोचो। संसार के बाहर है। मोक्ष महत्तम घटना है। इसलिए उसके लिए | तो मैं यह नहीं कह रहा हूं कि सोचने के लिए समय ही मत दो। जितना भी श्रम किया जाए वह अंततः थोड़ा है। जब मोक्ष की घड़ी दो घड़ी निकाल लो और उस समय सिर्फ सोचो। जरूरत है उपलब्धि होती है तो पता चलता है, जो हमने किया था वह न | उसकी भी। वह भी तुम्हारे जीवन का अंग है। उसे भी समय कुछ था। हां, जब तक मिला नहीं है मोक्ष, तब तक ऐसा लगता चाहिए। सब समय को ठीक से बांट दो। मगर एक खयाल रहे है कि कितना कर रहे हैं, और कुछ भी नहीं हो रहा है...कुछ भी कि जो भी कृत्य हो वह मूर्छा में न हो। नहीं हो रहा है। अगर हाथ में आ-आकर होश छूट जाता हो, तो इतना ही और बात खयाल रखना, जैसे सौ डिग्री गर्मी पर पानी भाप खयाल रखना कि थोड़ी चेष्टा और। 602] Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org