________________ रसमयता और एकाग्रता रहे हो। चाहे घर तुम्हारा ही हो; है तो भगवान का ही मंदिर। टटोलो। तो फिर लोग गलत जगहों पर पहुंच जाते हैं। ही करो जैसे भगवान को ही भोग लगा रहे एक बहत बडा सर्जन, जिसकी सारी जगत में ख्याति थी. जब हो। भोजन तो तुम ही कर रहे हो लेकिन अंततः तो भगवान को साठ वर्ष का हुआ और उसकी साठवीं वर्षगांठ मनाई गई तो ही लग रहा है भोग। वही तो तुम्हारे भीतर आकर भूख बना। सारी दुनिया से उसके मित्र इकट्ठे हुए, उसके मरीज इकट्ठे हुए उसी ने तो तुम्हारी भूख जगाई। वही तो तुम्हारे भीतर भूखा है। और उन्होंने उसका बड़ा स्वागत किया। लेकिन वह बड़ा उदास उसके लिए ही तो तुम भोजन दे रहे हो। रस जगाओ। एकाग्रता था। उसके स्वागत में एक नृत्य का आयोजन किया गया था। तो की बात मत उठाओ। रस का सहज परिणाम एकाग्रता है। जो | जब लोग नृत्य करने लगे और वह सर्जन देखता रहा तो उसकी करते हो उसे रसपूर्ण ढंग से करो। उसमें डुबकी लो। छोटे और आंख से आंसू टपकने लगे। बड़े काम नहीं हैं दनिया में। जिस काम में तम डुबकी ले लो, उसके पास बैठे उसके मित्र ने पूछा, क्या मामला है? हम सब वही बड़ा हो जाता है। बुहारी लगाने में डूब जाओ, वही बड़ा हो तुम्हारी वर्षगांठ पर इकट्ठे हुए प्रसन्नता से। यह नृत्य तुम्हारे जाता है। स्वागत में होता है, तुम रोते क्यों हो? तुम्हारी आंख में आंसू | कबीर कहते हैं: 'खाऊ-पिऊ सो सेवा, उठे-बैठं सो क्यों हैं? तुम किस पीड़ा से भीग गए हो? परिक्रमा।' मेरा उठना बैठना ही उस परमात्मा की परिक्रमा है। उसने आंसू पोंछ लिए। उसने कहा कि नहीं, वह कोई बात और जो मैं खाता-पीता हूं, यही उसकी सेवा है। रस! नहीं है। पर मित्र ने जिद्द की। कहा कि क्या तुम्हें कोई जीवन में मेरे देखे अधिक लोगों के जीवन का कष्ट यही है कि वे जीवन विफलता मिली? तुम जैसा सफल आदमी नहीं है। तुमने जो में कहीं भी रस नहीं ले रहे हैं। जो भी कर रहे हैं, बेमन से कर रहे | आपरेशन किया, सफल हुआ। तुम्हारे जैसा कुशल सर्जन हैं। कर रहे हैं क्योंकि करना है। खींच रहे हैं। जैसे बैलगाड़ी में दुनिया में नहीं। फिर क्या? जुते बैल; ऐसा जीवन को खींच रहे हैं। नाचते हुए, उमंग से भरे लेकिन उसने कहा, मैं कभी सर्जन होना ही नहीं चाहता था। हुए नहीं। | मेरा दिल तो एक नर्तक होने का था। आज नाच को देखकर मैं रो अगर तुम कोई ऐसे काम में लगे हो, जिसमें तुम रस ले ही नहीं उठा। मैं छोटा-मोटा नर्तक होता, कोई मुझे न जानता तो भी मेरी सकते तो बदलो वह काम। कोई काम जीवन से ज्यादा मूल्यवान | तृप्ति होती। आज मैं दुनिया का सबसे बड़ा सर्जन हूं, लेकिन नहीं है। अक्सर ऐसा हआ है. हो रहा है कि लोग ऐसे काम में मेरी कोई तप्ति नहीं है। मेरी नियति ही मझे न मिली। तो आज भी उलझे हैं जो उनमें रस नहीं जगाता। किसी को कवि होना था, वह जब मैं किसी को नाचते देखता हूं तो बस, मुझे याद हो आती है। जूते बेच रहा है, बाटा की दुकान पर बैठा है। और जिसको बाटा तुम अपनी जिंदगी को गौर से देखो। पहली तो बात—जो कर की दुकान पर बैठना था, वह कविता कर रहा है। तो उसकी रहे हो उसमें रस लेने की कोशिश करो। हो सकता है तुमने रस कविता में जूते की पालिश की गंध आती। आएगी ही। का अभ्यास नहीं किया। तुम्हें किसी ने सिखाया ही नहीं कि रस लोग वहां हैं, जहां उन्हें नहीं होना था। और यह विकृति के का अभ्यास कैसे करना। कारण है। क्योंकि तुमने कभी अपने सहज भाव को तो खोजा रस के अभ्यास का पहला सिद्धांत है कि जो भी कर रहे हो, नहीं। किसी के पिता ने कहा कि दकान करो। इसमें ज्यादा लाभ इसका परिणाम मुल्यवान नहीं है। तुम्हें यही सिखाया गया है कि है। किसी के पिता ने कहा, डाक्टर बन जाओ। किसी की मां को परिणाम मूल्यवान है। तुम करते हो, इससे दस रुपये मिलेंगे कि खयाल था, बेटा इंजीनियर बने। परिवार को धुन थी कि बेटा | हजार रुपये मिलेंगे कि लाख रुपये मिलेंगे। लाख रुपये में मूल्य नेता बने। है, परिणाम में मूल्य है। तो सब धक्का दे रहे हैं एक-दूसरे को कि यह बन जाओ, वह | रस का सिद्धांत है, जो तुम कर रहे हो, वह अपने आप में मूल्य बन जाओ। कोई यह नहीं पूछता कि यह बेटा क्या बनने को पैदा है। अंतर्निहित है मूल्य। हजार मिलेंगे, दस हजार मिलेंगे, वह हुआ है? इससे भी तो पूछो। थोड़े इसके हृदय को भी तो बात गौण है। करने में जो डुबकी लगेगी वही बात महत्वपूर्ण है। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org