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________________ रसमयता और एकाग्रता को लीपापोती करना है। गाना, नाचना, चुप होकर बैठ जाना। अपेक्षा मत ले जाओ। तुम जैसी निरुद्देश्य यहां आयी थीं, बिना किसी भाव के कुछ सहज होना; सहजस्फूर्त। और फिर संबंध नहीं टूटता है। पता न था क्या घटेगा, ऐसे ही वापस जाओ बिना कुछ पता लिए तू सोज-ए-हकीकी है मैं परवाना हूं कि क्या घटेगा। बहुत कुछ घटने को है। मैं तुमसे पहले तुम्हारे | तू वादा-ए-गुलरंग है मैं पैमाना हूं घर पहुंच गया हूं। तू रूह है मैं जिस्म हूं '...जो ध्यान यहां मिला वह कायम रहेगा और पुकारने पर तू अस्ल है मैं नक्ल आप सदा आते रहेंगे?' जिसमें है बयां तेरा, वह अफसाना हूं तुम फिक्र ही न करो। कभी-कभी बिना पुकारने पर भी | भक्त कहता है: आऊंगा। द्वार पर दस्तक दूं तो घबड़ाना मत। कभी अचानक तू सोज-ए-हकीकी है, मैं परवाना हूं सामने खड़ा हो जाऊं तो घबड़ाना मत। तू है सत्य का दीया, मैं हूं पतिंगा, परवाना। तुझ पर जलने को प्रेम न तो समय जानता, न स्थान जानता। क्षेत्र और काल आता हूं। दोनों के पार है। तू वादा-ए-गुलरंग है मैं पैमाना हूं दिन-रात खुली रहती हैं राहें दिल की -तू फूलों के रंग जैसी शराब है, मैं तेरा पात्र हूं। तकती हैं किसे रोज निगाहें दिल की तू वादा-ए-गुलरंग है मैं पैमाना हूं ये किसका तसव्वुर है, ये किसका है खयाल तू रूह है मैं जिस्म रोके जो रुकती नहीं आहे दिल की -तू है आत्मा, मैं शरीर। दिन-रात खुली रहती हैं राहें दिल की वे प्रेम के रास्ते सदा | तू अस्ल है मैं नक्ल ही खुले हुए हैं। अपेक्षा से बंद हो जाते हैं। द्वार बंद हो जाता, | भक्त अपने को पोंछ देता है, मिटा देता है। अपेक्षा रखोगे तो भिड़ जाता। अपेक्षा भर मत ले जाओ। प्रफुल्लता से, तुम रहोगे। क्योंकि अपेक्षा तुम्हारी है; तुम्हारे अहंकार की, मग्न-भाव से जाओ। अस्मिता की है। अपेक्षाएं हटा दो। अपेक्षाओं के गिरते ही दिन-रात खली रहती है राहें दिल की तुम्हारा अहंकार गिर जाएगा। तकती हैं किसे रोज निगाहें दिल की तू रूह, मैं जिस्म दिल की निगाह के लिए कोई भौतिक उपस्थिति जरूरी नहीं त अस्ल, मैं नक्ल है। दिल की आंख दर से देख लेती है। और दिल की आंख न हो | तब भक्त नक्ल हो जाता है, नकल हो जाता है। वह कहता है तो पास से भी नहीं देख पाती। दिल की आंख न हो तो आदमी तेरी छाया, प्रतिबिंब दर्पण में बनी तेरी प्रतिछवि। अंधे की तरह आता, अंधे की तरह चला जाता। तू अस्ल, मैं नक्ल ये किसका तसव्वर है, ये किसका है खयाल जिसमें है बयां तेरा, वह अफसाना हूं आता हूं तुम्हारे साथ। लेकिन तुम्हारी अपेक्षा रही तो न आ | ज्यादा से ज्यादा वह कहानी हूं, वह गीत हूं, जिसमें तेरा बयान पाऊंगा। अपेक्षा छोड़ दो। अपेक्षा का त्याग कर दो। आता हूं | है। अपने को पोंछो। अपने को हटाओ। उसी ढंग से परमात्मा तुम्हारे साथ एक तसव्वुर की तरह, एक भाव की तरह, एक के लिए जगह बनती है। भक्ति की तरह। तो मैं कहता हूं, त्रिवेणी, घर जाओ-खाली, शून्यवत। कोई ये किसका तसव्वुर है, ये किसका है खयाल अपेक्षा नहीं, कोई अतीत अनुभव की स्मृति नहीं। जो हुआ है रोके जो रुकती नहीं आहे दिल की वह फिर-फिर हो, ऐसी वासना नहीं-शून्य! उस शून्य में ही रोना! अपेक्षा मत ले जाओ। उसका दीया उतर आएगा; उसकी रोशनी भरेगी। हंसना! अपेक्षा मत ले जाओ। तू वादा-ए-गुलरंग मैं पैमाना हूं 5811 __Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340159
Book TitleJinsutra Lecture 59 Rasmayta aur Ekagrata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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