________________ जिन सूत्र भाग : 2 मगर उसने छू लिए पैर। गहन भाव की बात है। जाते हो। तुम भूल ही जाते हो। आनंद इत्यादि की बकवास भूल यह प्रश्न कई तरह से सोचने जैसा है। पहली बात : 'बिना जाते हो। अचानक तुम पाते हो, मिला। क्योंकि तुम्हारे खोने में किसी उद्देश्य के मैं अपने पति के साथ यहां आ गई।' ही आनंद है। और तो कोई आनंद नहीं है। तुम नदी भी पार कर ऊपर से जिसे हम उद्देश्य कहते हैं, ऊपर से जिसे हम लेते हो, तैर भी जाते हो। मित्र से कहते हो, हमें तो कुछ मिला चेष्टापूर्वक खोज कहते हैं, वह बड़ी उथली है। भीतर एक | नहीं।'तुम कहते थे, बड़ा आनंद मिलता है। निरुद्देश्य खोज चल रही है। वह जन्मों-जन्मों से चल रही है। ऐसे कभी-कभी तुम किसी को यहां मेरे पास ले आते हो, हमें कभी पता भी नहीं होता कि कहां किस द्वार पर हमारे लिए कहते हो चलो, सुनने में बड़ा आनंद आता है। बस, तुम गड़बड़ द्वार खुल जाएंगे! हमें पता भी नहीं होता कि कहां किस घड़ी में में उसको डाल रहे हो। यह तो भूलकर कहना ही मत कि सुनने में जीवन को शरण मिल जाएगी। शायद हम चेष्टा करके उसकी बड़ा आनंद आता है। क्योंकि आनंद का लोभ सभी को है। वह खोज भी नहीं कर रहे थे। अकस्मात घटता है। अक्सर चेष्टा | भी सोचेगा कि चलो, आनंद की तो खोज हम भी कर रहे हैं। करनेवाले लोग वंचित रह जाते हैं। क्योंकि चेष्टा में अहंकार है। अगर सुनने से ही आनंद मिलता है, इतना सस्ता मिलता है, चले मेरे पास दो तरह के लोग आते हैं। एक, जो जान-बूझकर धर्म चलते हैं। क्या बिगड़ता है? सुन ही लें। की खोज में निकले हैं। उनके साथ बड़ी अड़चन है। वे सब मगर वह पूरे समय बैठा है, देख रहा है किनारे से। जैसे तुमने आश्रमों में हो आए हैं। सब गुरुओं के पास हो आए हैं, सब देखा हो, बिल्ली बैठी रहती है, चूहे की राह देखती रहती है। ऐसे शास्त्र पढ़ लिए हैं। कहीं कुछ नहीं होता। लगती है बिलकुल शांत बैठी है, ध्यान कर रही है। ऊपर से जब ऐसा व्यक्ति मेरे पास आता है तो मैं जानता हूं, होना बहुत देखो तो ऐसा लगता है, बड़ी महावीर बनी बैठी है, ध्यान-मग्न; मश्किल है। उसकी सचेष्ट-आकांक्षा ही बाधा बन रही है। लेकिन उसकी नजर लगी है चूहे की पोल पर कि कब निकले! उसकी आकांक्षा के कारण ही वह बंद है। अभी तक नहीं निकला, अब निकले। बड़ी देर हुई जा रही है, दूसरे तरह के लोग हैं, जो कभी निरुद्देश्य आ जाते हैं। | भूख बढ़ती जा रही है। अकारण! वे ज्यादा खुले होते हैं। कुछ पाने की खोज नहीं तो वह जो आदमी आ गया है सुनने, इसलिए कि आनंद होती। कुछ पाने की अपेक्षा नहीं होती। मन ज्यादा खुला होता मिलेगा, वह आनंद के चूहे पर लगाए नजर बैठा है। और ध्यान है। सरलता से चीजें घट जाती हैं। रखना, बिल्ली की नजर से चूहा डरता है। निकलता ही नहीं। तुम इसे समझने की कोशिश करना। जो-जो तुमने वह भी अंदर से देख लेता है कि कहीं कोई ध्यानमग्न तो नहीं उद्देश्यपूर्वक खोजा है, उसे तुम कभी न पा सकोगे। जीवन में जो बैठा है! अगर बैठा है तो खतरा है। चूहे भी बिल्ली के पास नहीं भी महत्वपूर्ण है, वह उद्देश्यपूर्वक खोज से नहीं मिलता। आनद, | आते। कितना ही ध्यान करो! क्योंकि चूहे सत्य, प्रभु, कोई भी सीधी खोज से नहीं मिलते। आकस्मिक खाए हज को चली। इतने चूहे खा चुकी है, इसका भरोसा चूहों घटते हैं। अनायास घटते हैं। प्रसादरूप मिलते हैं। | को नहीं आता कि यह ध्यान में बैठी होगी। कोई मित्र तुमसे कहता है कि मैं तैरने जाता हूं नदी में, बड़ा आनंद बड़ी नाजुक घटना है। तुम जब बिलकुल बेखबर होते आनंद आता है। तुम कहते हो, तो हम भी आएंगे। आनंद की हो, मस्त होते हो, तब तुममें प्रवेश कर जाता है। सामने के द्वार तो हम भी तलाश कर रहे हैं। बस, गड़बड़ हो गई। तुम्हें न से आता ही नहीं, पीछे के द्वार से आता है। ऐसा ढोल इत्यादि मिलेगा! क्योंकि तुम तैरोगे ही नहीं। एक हाथ मारोगे और बजाकर आता ही नहीं। चुपचाप, पगध्वनि भी नहीं होती ऐसे सोचोगे, आनंद अभी तक नहीं मिला। कब मिलेगा अब? | चला आता है। आधी नदी पार भी हो गई, अभी तक आनंद नहीं मिला? अब तो अक्सर जो आकस्मिक रूप से आ गए हैं...। तुम उदास होने लगोगे। तुमको मैं कहता हूं, अपने मित्रों को कभी मत कहना कि बड़ा क्योंकि आनंद मिलता है तब, जब तुम तैरने में परिपूर्ण लीन हो | आनंद मिलता है, चलो। नहीं तो तुम उसके कारण बाधा बन -साचले 576 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org