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________________ मा वन की सबसे बड़ी पहेली स्वयं जीवन में नहीं है, एक किताब की शुरुआत इस वचन से की है कि 'मेरे देखे या जीवन की सबसे बड़ी पहेली मृत्यु में है। और दर्शनशास्त्र की सबसे बड़ी समस्या आत्मघात है।' जिसने मृत्यु को न जाना वह जीवन से अपरिचित | महावीर से पूछो, बुद्ध से पूछो, तो वे कहेंगे, मृत्यु। कामू रह जाता है। जीवन को जानने की कंजी मत्य में है। कहता है आत्मघात। करीब पहुंचा, लेकिन चूक गया। छोटे बच्चों की कहानियां तुमने पढ़ी होंगी। कोई राजा है या मृत्यु और आत्मघात में बड़ा फर्क है। आत्मघात का अर्थ रानी है, उसके जीवन की कुंजी किसी तोते में बंद है या किसी हुआ, जीवन ने अतृप्त किया। जीवन से जो सुख मांगा था, न मैना में बंद है। तोते को मरोड़ दो, राजा मर जाता है। राजा को मिला। जो मूल्य खोजे थे, वे न पाए जा सके। जो आशा की थी, मारने में लगे रहो, राजा नहीं मरता। वह टूटी। जो इंद्रधनुष बांधे थे कल्पनाओं के, वे सब बिखर जीवन को सुलझाने में लगे रहो, जीवन नहीं सुलझता। जीवन | | गए। उस हताशा में आदमी अपने को मिटा लेता है। का सुलझाव मृत्यु में है। ऐसी मिटाने की जो वृत्ति है, यह जीवन का अंतिम शिखर नहीं इसलिए जगत में जो बड़े मनीषी हुए, उन्होंने मृत्यु को समझने | है। यह संगीत की आखिरी ऊंचाई नहीं है, यह तो वीणा का टूट की चेष्टा की है। साधारणजन मृत्यु से बचते हैं, भागते हैं। | जाना है। परिणाम में जीवन से वंचित रह जाते हैं। इस विरोधाभास को आत्मघात दूसरा छोर है; जीवन से भी नीचा। मृत्यु आत्मघात जितना ठीक से पहचान लो, उतना उपयोगी है। के बिलकुल विपरीत है—जीवन की आखिरी ऊंचाई, जीवन का मृत्यु से भागना मत। जो मृत्यु से भागा, वह जीवन से ही भाग | गौरीशंकर। मृत्यु अर्जित करनी पड़ती है। मृत्यु के लिए साधना रहा है। क्योंकि मृत्यु जीवन की पूर्णाहुति है। मृत्यु है जीवन का | करनी पड़ती है। मृत्यु को सम्हालना पड़ता है। जो अति कुशल आत्यंतिक स्वर। जीवन मृत्यु पर समाप्त होता, पूरा होता। मृत्यु है, वही केवल ठीक-ठीक मृत्यु को उपलब्ध हो पाता है। और है फल। जीवन है यात्रा, मृत्यु है मंजिल। ठीक मृत्यु ही न मिली तो जीवन हाथ से बह गया। फिर तुम थोड़ा सोचो, मंजिल से बचने लगो तो यात्रा कैसे होगी? और | पाठशाला में तो रहे, लेकिन पाठ न आया। तुम विद्यालय से गए अंतिम से बचने लगो तो प्रथम से ही बचना शुरू हो जाएगा। | तो लेकिन उत्तीर्ण न हुए। मौत से जो डरा, मौत से जो भागा, उसके ऊपर जीवन की वर्षा इसलिए पूरब कहता है, जो उत्तीर्ण न होंगे उन्हें बार-बार भेज नहीं होती। वह जीवन से अछता रह जाता है। इसलिए कायर से दिया जाएगा। उचित है। जीवन से अगर मत्य का पाठ सीख ज्यादा दयनीय इस जगत में कोई और नहीं है। लिया तो फिर आना नहीं है। जो होशपूर्वक, आनंदपूर्वक, पश्चिम के एक बहुत बड़े विचारक आल्बेर कामू ने अपनी उल्लासपूर्वक मरता है उसकी फिर वापसी नहीं है। यही तो Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary org
SR No.340158
Book TitleJinsutra Lecture 58 Pandit Maran Sumaran Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size30 MB
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